Menu
Just another WordPress.com site
​घराना
घराना ( परिवार), हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विशिष्ट शैली है, क्योंकि हिंदुस्तानी संगीत बहुत विशाल भौगोलिक क्षेत्र में विस्तृत है, कालांतर में इसमें अनेक भाषाई तथा शैलीगत बदलाव आए हैं।
इसके अलावा शास्त्रीय संगीत की गुरु-शिष्य परंपरा में प्रत्येक गुरु वा उस्ताद अपने हाव-भाव अपने शिष्यों की जमात को देता जाता है।
घराना किसी क्षेत्र विशेष का प्रतीक होने के अलावा, व्यक्तिगत आदतों की पहचान बन गया है, यह परंपरा ज़्यादातर संगीत शिक्षा के पारंपरिक तरीके तथा संचार सुविधाओं के अभाव के कारण फली-फूली, क्योंकि इन परिस्थितियों में शिष्यों की पहुँच संगीत की अन्य शैलियों तक बन नहीं पाती थी।
हिंदुस्तानी संगीत के प्रमुख घराने
1. ग्वालियर घराना
2. आगरा घराना
3. किराना घराना
4. बनारस घराना
5. जयपुर-अतरौली घराना
6. रामपुर-सहस्वान घराना
7. पटियाला घराना
8. दिल्ली घराना
9. भिंडी बाज़ार घराना
10. मेवाती घराना
1- ग्वालियर घराना-
ग्वालियर घराना हिंदुस्तानी संगीत का सबसे प्राचीन
घराना है। हस्सू खाँ, हद्दू खाँ के दादा उस्ताद नत्थन पीरबख्श को इस घराने का जन्मदाता कहा जाता है।
दिल्ली के राजा ने इनको अपने पास बुला लिया था। इनके दो पुत्र थे-कादिर बख्श और पीर बख्श। इनमें कादिर बख्श को ग्वालियर के महाराज दौलत राव जी ने अपने राज्य में नौकर रख लिया था। कादिर बख्श के तीन पुत्र थे जिनके नाम इस प्रकार हैं- हद्दू खाँ, हस्सू खाँ और नत्थू खाँ। ये तीनों भाई मशहूर ख्याल गाने वाले और ग्वालियर राज्य के दरबारी उस्ताद थे। इसी परम्परा के शिष्य बालकृष्ण बुआ इचलकरजीकर थे। इनके शिष्य पं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर थे। पलुस्कर जी के प्रसिद्ध शिष्य ओंकारनाथ ठाकुर, विनायक राव पटवर्धन, नारायण राव व्यास तथा वीणा सहस्रबुद्धे हुए जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत का खूब प्रचार किया।
संस्थापक
हद्दू खाँ, हस्सू खाँ और नत्थू खाँ
विशेषतायें
1. खुली आवाज़ का गायन
2. ध्रुपद अंग का गायन
3. अलापों का निराला ढंग
4. सीधी सपाट तानों का प्रयोग
5. गमक का प्रयोग
6. बोल तानों का विशेष प्रयोग
प्रतिपादक
बालकृष्ण बुआ इचलकरजीकर
विष्णु दिगम्बर पलुस्कर
ओंकारनाथ ठाकुर
विनायक राव पटवर्धन
नारायण राव व्यास
वीणा सहस्रबुद्धे
2-आगरा घराना-
आगरा घराना हिंदुस्तानी संगीत के प्रसिद्ध घरानों में से एक है। आगरा घराने के जन्मदाता तानसेन के दामाद हाजी सुजान साहब थे। आगरा घराने में जिन्होंने पूरे देश में ख्याति प्राप्त की उनका नाम था उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ। फ़ैयाज़ खाँ की आवाज़ बहुत दमदार थी और ये महफिल में अपना अनोखा रंग जमा देते थे।
विशेषता
1. नोम-तोम में आलाप करना
2. खुली जोरदार आवाज़ में गाना
3. लय ताल पर विशेष जोर।
संस्थापक
हाजी सुजान खान और उस्ताद घग्घे खुदा बख्श
प्रतिपादक
फ़ैयाज़ खान
लताफ़त हुसैन खान
दिनकर काकिनी
3- किराना घराना
किराना घराना भारतीय शास्त्रीय संगीत और गायन की हिंदुस्तानी ख़याल गायकी की परंपरा को वहन करने वाले हिंदुस्तानी घरानों में से एक है। किराना घराने का नामकरण उत्तर प्रदेश के प्रबुद्ध नगर ज़िले के एक तहसील क़स्बा किराना से हुआ माना जाता है। यह उस्ताद अब्दुल करीम खाँ का जन्म स्थान भी है, जो बीसवीं सदी में किराना शैली के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भारतीय
संगीतज्ञ थे।
संस्थापक
अब्दुल करीम खाँ और अब्दुल वाहिद खान
प्रतिपादक
सवाई गंधर्व
सुरेशबाबू माने
प्रभा अत्रे
हीराबाई बादोडकर की शिष्या
माणिक वर्मा
सुरेशबाबू माने
4- बनारस घराना
बनारस घराना ( अंग्रेज़ी : Banaras Gharana )
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध घरानों में गिना जाता है। शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में इस घराने का बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान है। उत्तर प्रदेश का बनारस घराना जयपुर घराने के समकालीन माना जाता है। इस घराने में गति व श्रंगारिकता के स्थान पर प्राचीन व प्रारंभिक शैली पर अधिक जोर दिया गया। बनारस घराने के नाम पर प्रख्यात नृत्यगुरु सितारा देवी के पश्चात् उनकी पुत्री कथक क्वीन जयंतीमाला ने इसके वैभव और छवि को बरकरार रखने का प्रयास किया है एवं गुरु-शिष्य परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं।
शैली
यह घराना गायन और वादन दोनों कलाओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। इस घराने के गायक ख़्याल गायकी के लिए जाने जाते हैं। इसके साथ ही बनारस घराने के तबला वादकों की भी अपनी एक स्वतंत्र शैली रही है। सारंगी वादकों के लिए भी यह घराना काफ़ी प्रसिद्ध रहा है। इस घराने की गायन एवं वादन शैली पर उत्तर भारत के लोक गायन का गहरा प्रभाव है। कुछ विद्वानों का कथन है कि आर्यों के भारत में स्थायी होने से पहले यहाँ की जनजातियों में संगीत विद्यमान था। उसका आभास बनारस के लोक संगीत में दिखता है। ठुमरी मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश की ही देन है। लखनऊ में इसकी पैदाइश हुई थी और बनारस में इसका विकास हुआ।
बनारसी ठुमरी
बनारसी ठुमरी के दो प्रकार हैं-
1. धनाक्षरी अर्थात शायरी ठुमरी – यह द्रुतलय में गाई जाती है और द्रुत तानों के द्वारा प्रसारित की जाती है।
2. बोल की ठुमरी – इसे मंद गति के साथ गाया जाता है और एक-एक शब्द को बोलते हैं।
बनारस अंग की ठुमरी में चैनदारी है। यहाँ की बोल-चाल और कहने का अलग क़िस्म का होता है। यहाँ की ठुमरी में ठहराव और अदायगी का अपना एक अलग रंग है। इसमें ख़ूबसूरती अपेक्षाकृत अधिक रहती है। ग्वालियर के राजा मानसिहं तोमर (तंवर) ठुमरी के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं के नाम पर इसका नाम ‘तनवरी’ पड़ा था, जो बाद में बिगड़कर ठुमरी हो गया। ठुमरी के इतिहास में मौजुद्दीन ख़ान, ग्वालियर के भैयासाहब गणपतराव और नवाब वाजिद अलीशाह का नाम भी महत्त्वपूर्ण है। बनारस की ठुमरी पंडित जगदीप मिश्र जी से शुरू हुई। पंडित जगदीप मिश्र, भैया गणपतराव एवं मौजुद्दीन ख़ान के समय से विलंबित लय की बोल बनाव ठुमरी के गाने का प्रचलन बढ़ा तथा बनारस में इसका अत्यधिक प्रचार-प्रसार हुआ, तत्पश्चात यही ठुमरी पूरब की बोलियाँ तथा लोकगीतों के प्रभाव से और अधिक भाव प्रधान हो गई, और अंत में ‘बनारसी ठुमरी’ के नाम से रूढ़ हो गई।
घराने की ख़्याल शैली
बनारस घराने का ख़्याल शैली में भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। इस गायन पद्धति में शब्द का स्पष्ट उच्चारण किया जाता है। भावनाओं को स्वरों के माध्यम से सशक्त रूप से प्रकट किया जाता है। बनारस घराने के गायक ख़्याल गायन के लिए विशेष तौर पर पहचाने जाते हैं। ख़्याल का तात्पर्य है- ‘कल्पना’। इसका अभिव्यक्तिकरण विविधता से और सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए। ख़्याल गायन हज़ारों वर्षों की प्राचीन परंपरा है। यह प्राचीन परंपरा मुग़ल बादशाहों के दरबार में ध्रुपद पद्धति से गायी जाती थी। ख़्याल में हिन्दू और मुस्लिम कवियों की शृंगारिक या भक्ति रस में समर्पित रचनाओं का समावेश है। बनारस घराने के ख़्याल गायन में बनारस एवं गया की ठुमरी का समावेश है।
तबला प्रस्तुति
इस घराने की तबला वादक प्रस्तुति की अपनी एक स्वतंत्र पद्धति रही है। लगभग दो सौ वर्ष पूर्व पंडित रामसहाय मिश्र का जन्म 1780 में बनारस में हुआ था। बारह वर्ष की अल्प आयु में ही पंडित जी को अपने गुरु से तबले का सर्वोत्तम प्रशिक्षण प्राप्त हुआ था। वे जब मात्र केवल 21 वर्ष के थे, तभी उन्होंने नवाब वाजिदअली शाह के दरबार में सात दिन तक बिना रुके और पुनरावृत्ति न करते हुए तबला वादन किया था। उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन लोगों के सामने बंद कर अपना ध्यान तबला वादन की नयी पद्धति की खोज करने में केन्द्रित कर दिया था। इन्होंने तबले पर हाथ रखने की पद्धति और उँगलियों का प्रयोग नए ढंग से करके तबला वादन की नई पद्धति की खोज की, जिसका नाम बनारसी बाज़ पड़ा। इस पद्धति का उपयोग एकल वादन के साथ ध्रुपद गायन, जो पखावज के साथ गाया जाता है तथा ठुमरी , टप्पा और अनेक प्रकार के वाद्यों के साथ संगत में होने लगा।
प्रसिद्ध संगीतज्ञ
बनारस घराना गायन और वादन दोनों के लिए ही बहुत प्रसिद्ध रहा है। इस घराने के कुछ संगीतज्ञों के नाम इस प्रकार हैं-
1. शहनाई वादक – उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान, पंडित रामसहाय मिश्र (जिन्होंने ‘बनारसी बाज़’ का शोध किया था)
2. तबला वादक – पंडित कंठे महाराज, पंडित अनोखे लाल,
पंडित किशन महाराज एवं पंडित गुदई महाराज आदि।
3. पखावज और मृदंग वादक – बनारस के पंडित मदन मोहन, पंडित भोलानाथ पाठक और पंडित अमरनाथ मिश्र आदि।
सुप्रसिद्ध सितार वादक पंडित रविशंकर का जन्म भी
बनारस में हुआ। श्रेष्ठ संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा के
पिता पंडित अमर दत्त शर्मा ने बनारस घराने के महान गायक पंडित बड़े रामदास जी से शिक्षा प्राप्त की थी। बनारस घराना सारंगी वादकों के लिए भी प्रसिद्ध रहा है, जिसमें प्रमुख है-
1. शम्भू सुमीर
2. गोपाल मिश्र
3. हनुमान प्रसाद मिश्र
4. नारायण विनायक
बनारसी ठुमरी एवं ख़्याल गायन यहाँ की विशिष्ट पद्धति है। ठुमरी गायिकाओं में रसूलन बाई, बड़ी मोती बाई, सिद्धेश्वरी देवी और गिरिजा देवी प्रमुख हैं। ख़्याल गायन में पंडित बड़े रामदास जी, पंडित छोटे रामदास जी, पंडित महादेव प्रसाद मिश्र, पंडित राजन-साजन मिश्र और उनके पुत्र एवं शिष्य इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे है।
5- जयपुर-अतरौली घराना
जयपुर-अतरौली घराना ( अंग्रेज़ी :
Jaipur-Atrauli Gharana )
हिंदुस्तानी संगीत के प्रसिद्ध
घरानों में से एक है। इसे ‘जयपुर घराना’ और ‘अल्लादिया ख़ान घराना’ नाम से भी जाना जाता है। उस्ताद अल्लादिया ख़ान इस घराने के संस्थापक कहे जाते हैं।
जयपुर घराने की शुरुआत करने वालों में भानु जी का नाम भी आता है, जिन्हें किसी संत द्वारा ताण्डव नृत्य की शिक्षा प्राप्त हुई। इनके बेटे मालु जी थे, जिन्होंने अपने पिता के सीखे हुए
नृत्य की शिक्षा अपने दोनों बेटों- लालू जी और कान्हू जी को दी। कान्हू जी ने
वृंदावन जा कर नटवरी नृत्य की शिक्षा भी प्राप्त की। इनके दो लड़के थे- गीधा जी और शेजा जी। पहले ने ताण्डव व दूसरे ने लास्य अंग में विशेष योग्यता प्राप्त की।
नृत्य शैली
जयपुर घराने से तात्पर्य कथक नृत्य की राजस्थानी परम्परा से है। इसके नर्तक ज़्यादातर हिन्दू राजाओं के दरबारों से संबद्ध रहे, अतः जहाँ एक ओर कथक नृत्य की बहुत-सी प्राचीन परम्परायें इस घराने में अभी भी सुरक्षित हैं, वहीं अपने आश्रायदाताओं की रुचि के अनुसार इनके नृत्य में जोश व तेज़ी तैयारी अधिक दिखाई पड़ती है। पखावज की मुश्किल तालों, जैसे- धमार, चौताल, रूद्र, अष्टमंगल, ब्रह्मा, लक्ष्मी, गणेश आदि ये अत्यंत सरलता से नाच लेते हैं। इनके द्वारा तत्कार में कठिन लयकारयों का प्रदर्शन बहुत प्रसिद्ध है। जितना पैरों की सफ़ाई पर इसमें ध्यान दिया जाता है, उतना हस्तकों पर नहीं। नृत्य के बोलों के अलावा,
कवित्त , प्रिमलू, पक्षी परन, जाती परन आदि के विभिन्न प्रकार के बोलों का प्रयोग इस घराने की विशेषता है। भाव प्रदर्शन में सात्विकता रहती है और ठुमरी की अपेक्षा भजन पदों पर भाव दिखाये जाते हैं।
विशेषता
1. गीत की बंदिश छोटी होना
2. खुली आवाज़ में गाना,
3. आवाज़ बनाने का निराला ढंग
4. वक्र तानें।
प्रतिपादक
मल्लिकार्जुन मंसूर
केसरभाई केरकर
किशोरी अमोनकर
श्रुति सदोलीकर
पद्म तलवलकर
अश्विनी भिडे
प्रमुख नर्तक
कथक की जन्मस्थली राजस्थान की इस धरा से जुड़े कथक के तीर्थ जयपुर घराने में नृत्य के दौरान पाँव की तैयारी, अंग संचालन व नृत्य की गति पर विशेष ध्यान दिया जाता है, इसीलिए सशक्त नृत्य के नाम पर जयपुर घराना शीर्ष स्थान कायम किए हुए है। नृत्याचार्य गिरधारी महाराज व शशि मोहन गोयल के अथक प्रयासों के दम पर यह घराना अपनी पूर्व छवि कायम किए हुए है। इनकी शिष्याओं ज्योति भारती गोस्वामी, कविता सक्सेना, निभा नारंग, रीमा गोयल, प्रीति सोनी, मधु सक्सेना और गीतांजलि आदि अनेक कलाकारों ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जयपुर घराने का काफ़ी नाम किया है। जयपुर घराने को शीर्ष पर पहुँचाने में ‘ पद्मश्री ‘ से सम्मानित उमा शर्मा, प्रेरणा श्रीमाली, ‘पद्मश्री’ शोवना नारायण, राजेन्द्र गंगानी और जगदीश गंगानी के योगदान को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है। इन कलाकारों ने विदेशों में भारतीय शास्त्रीय नृत्य की जो अमिट छाप छोड़ी है, वह अविस्मरणीय है।
6- रामपुर-सहस्वान घराना
रामपुर-सहस्वान घराना हिंदुस्तानी संगीत के प्रसिद्ध
घरानों में से एक है। रामपुर सहस्वान घराने की इस शैली में
स्वर की स्पष्टता पर एक तनाव है और विकास और राग का विस्तार एक चरण दर चरण प्रगति के माध्यम से किया जाता है।
संस्थापक
उस्ताद इनायत खान
प्रतिपादक
ग़ुलाम मुस्तफ़ा खान
उस्ताद निसार खान
उस्ताद राशिद खान
सुलोचना
बृहस्पति
7- पटियाला घराना
पटियाला घराना हिंदुस्तानी संगीत के प्रसिद्ध घरानों में से एक है। पटियाला घराने दिल्ली घराने की एक शाखा के रूप में माना जाता है।
संस्थापक
उस्ताद फ़तेह अली खान
उस्ताद अली बख्श
प्रतिपादक
बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ
अजॉय चक्रवर्ती
रज़ा अली खान
बेगम अख़्तर
निर्मला देनी
नैना देवी
परवीन सुल्ताना
8- दिल्ली घराना
दिल्ली घराना हिंदुस्तानी संगीत के प्रसिद्ध घरानों में से एक है। तानरस खान और शब्बू खान इस घराने के प्रवर्तक माने जाते हैं। तानरस खान की तान बहुत मशहूर थी। इन्होंने तानों का बहुत अभ्यास किया था। इनके पुत्र उमराव खाँ हुए जिन्होंने घराने को आगे चलाया।
संस्थापक
उस्ताद मम्मन खान
प्रतिपादक
चांद खान
नसीर अहमद खान
उसमान खान
इक़बाल अहमद खान
कृष्णा बिष्ट
9- भिंडी बाज़ार घराना
भिंडी बाज़ार घराना हिंदुस्तानी संगीत के प्रसिद्ध
घरानों में से एक है। भिंडी बाज़ार घराने की सबसे विशिष्ट विशेषता खयाल है, जो खुले आवाज़ की प्रस्तुति है। आवाज़ का उपयोग कर, सांस नियंत्रण और लंबे मार्ग की एक सांस में गायन पर एक तनाव है।
संस्थापक
उस्ताद छज्जू खान
प्रतिपादक
उस्ताद अमन अली खान
शशिकला कोरटकर
अंजनीबाई माल्पेकर
10- मेवाती घराना
मेवाती घराना हिंदुस्तानी संगीत के प्रसिद्ध घरानों में से एक है। यह अपनी शैली भाव प्रधान नोट्स के माध्यम से राग का मूड के विकास को महत्व देता है। यह पाठ के अर्थ को समान महत्व देता है।
संस्थापक
घग्गे नज़ीर खान
प्रतिपादक
पंडित जसराज
मोती राम
मणिराम
संजीव अभ्यंकर

Advertisement

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

 
Top