#राजस्थान_मृत्युभोज_निवारण_अधिनियम_1960
(1960 का अधिनियम संख्या 1) 3 फ़रवरी 1960

राजस्थान सभी तरह की कुरीतियों एवं अंधविश्वासों का घर है| ऐसी कोई सामाजिक कुरीति अथवा अन्धविश्वास नहीं है जो राजस्थान में व्याप्त न हो | दहेज़, बाल विवाह, मृत्युभोज आदि सभी अंधविश्वासों एवं कुरीतियों ने राजस्थान को जकड़ रखा है | निर्धनता के बावजूद यहाँ मृत्युभोज बड़े पैमाने पर किया जाता है| लोग कर्ज की मर सहन कर लेते है पर मृत्युभोज (Mrityu Bhoj) करना नहीं छोड़ते| इसी अन्धविश्वास,कुरीति एवं प्रवृति से प्रांत वासियों को को मुक्ति प्रदान करने हेतु सन 1960 में राजस्थान मृत्युभोज निवारण अधिनियम पारित किया गया|




उद्देशिका-
इस अधिनियम के उद्देश्यों को प्रारंभ में ही स्पष्ट कर दिया गया है, यथा-
चूँकि राजस्थान राज्य में मृत्युभोज करने को निवारित करने के लिए उपबंध करना सामान्य जनता के हित में समीचीन है ;
अतः भारत गणतंत्र के दसवें वर्ष में राजस्थान विधान मंडल द्वारा इसे अधिनियम किया गया|
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार एवं प्रारंभ:-
(i) यह अधिनियम राजस्थान मृत्युभोज निवारण अधिनियम, 1960 कहलायेगा|
(ii) यह सम्पूर्ण राजस्थान में प्रवृत होगा|
(iii) यह तुरंत प्रभावशाली होगा |

2. परिभाषायें:- इस अधिनियम में, जब तक विषय या प्रसंग द्वारा अन्यथा अपेक्षित न हो-

(क) 'मृत्युभोज' से अभिप्राय किसी व्यक्ति की मृत्यु के अवसर पर, या उसके सम्बन्ध में बाद में किसी भी समय या किसी भी समयांतर के बाद आयोजित की गयी या दी गयी दावत से है तथा इसमें नुक्ता, मोअस्सर एवं चुहलम शामिल है; एवं 
(ख) 'मृत्यु भोज आयोजित करना या देना' में तैयार की गयी या बिना तैयार की गयी खाध्य वस्तुओ का वितरण शामिल है लेकिन इसमें धार्मिक या धर्म निरपेक्ष संस्कारों के निष्पादन के अनुसरण में परिवार के लोंगों या पूजा आदि कराने वाले व्यक्तियों या फकीरों को भोजन कराना शामिल नहीं है; परन्तु इस सब की कुल संख्या एक सौ (100) व्यक्ति से अधिक नहीं होनी चाहिए |

3. मृत्युभोज का प्रतिषेध:- कोई भी व्यक्ति राज्य में मृत्युभोज का आयोजन नहीं करेगा या मृत्युभोज नहीं देगा या उसमें शामिल नहीं होगा अथवा भाग नहीं लेगा |


टिप्पणी

इस धारा के अंतर्गत निम्नलिखित कार्यों को दंडनीय अपराध घोषित किया गया है -
(i) मृत्यु भोज का आयोजन करना ;
(ii) मृत्यु भोज देना, एवं
(iii) मृत्यु भोज में सम्मिलित होना |

4. धरा 3 के उल्लंघन के लिए दंड :- जो कोई भी धारा 3 के उपबंधो का उल्लंघन करेगा या इसके उल्लंघन के लिए उकसायेगा, दुष्प्रेरित करेगा, उसके करने में सहायता करेगा, किसी भी विवरण के ऐसी अवधि के कारावास से जो एक वर्ष तक का हो सकेगा या ऐसे जुर्माने से जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा या दोनों से दण्डित किया जायेगा |

टिप्पणी

किसी व्यक्ति को कोई कार्य करने के लिए उकसाना या उत्प्रेरित करना दुष्प्रेरण (abetment) है |1

उत्प्रेरण का अर्थ है - किसी कार्य को करने के लिए उद्धत करना, आगे बढ़ाना, प्रेरित करना या प्रोत्साहित करना |2

5. निषेधाज्ञा जारी करने की शक्ति :- यदि धारा 4 के अंतर्गत दंडनीय अपराध का संज्ञान लेने में सक्षम न्यायालय इससे समाधान कर लेता है कि इस अधिनियम के उपबंधों के उल्लंघन में किसी मृत्युहोज को करने की व्यवस्था की गयी है या की जाने वाली है या कोई मृत्युभोज दिया जाने वाला है, तो वहा न्यायलय ऐसे मृत्युभोज आयोजित करने अथवा देने का प्रतिषेध करते हुए एक निषेधाज्ञा जरी कर सकेगा |

टिप्पणी

निषेधाज्ञा जारी करने का मुख्या उद्धेश्य होता है -
(i) किसी अवैध अथवा दोषपूर्ण कार्य की निरंतरता को रोकना, एवं
(ii) ऐसे कार्य को प्रारंभ करने से निवारित  करना |3

6. धारा 5 के अधीन निषेधाज्ञा की अवज्ञा करने के लिए दंड :- जो कोई भी यह जानते हुए की धारा 5 के अधीन निषेधाज्ञा जरी की गयी है, ऐसी निषेधाज्ञा का उल्लंघन करेगा वह किसी भी प्रकार से ऐसी अवधि के कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक हो सकेगी या ऐसे जुर्माने से जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा या दोनों से दण्डित किया जायेगा |

7. सरपंच आदि सुचना देने के लिए बाध्य :- (1) राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 (1994 का 13) के अधीन स्थापित ग्राम पंचायत का सरपंच या पंच तथा प्रत्येक पटवारी या लम्बरदार, धारा 4 या  6 के अधीन दंडनीय अपराध का संज्ञान करने में सक्षम सबसे नजदीक के मजिस्ट्रेट को तत्काल ऐसी सूचना देने के लिए बाध्य होगा जिसे वह अपनी अधिकारिता की स्थानीय परिसीमा के भीतर उस अपराध को करने के या किये जाने के आशय के सम्बन्ध से अपने पास रखता हो | 
(2) उपधारा (1) के द्वारा अपेक्षित सुचना देने में असमर्थ रहने वाला प्रत्येक सरपंच, पंच, पटवारी या लम्बरदार किसी भी प्रकार के ऐसी अवधि के कारावास से जो तीन माह तक का होगा, या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जाएगा |

टिप्पणी

मृत्युभोज की सुचना देने का कर्त्तव्य निम्नलिखित व्यक्तियों पर अधिरोपित किया गया है -

(i) सरपंच;
(ii) पंच;
(iii) पटवारी; एवं 
(iv) लम्बरदार

8. धन उधार लेने या उधार देने का प्रतिषेध:- (1) कोई भी व्यक्ति मृत्युभोज आयोजित करने या मृत्युभोज देने के लिए किसी अन्य व्यक्ति से धन या सामग्री न तो उधार लेगा या न कोई व्यक्ति उसे उधार देगा |
(2) इस जानकारी के साथ या विश्वास योग्य इन कारणों के होते हुए की उसके द्वारा उक्त प्रकार से दिए ऋण का उपयोग मृत्युभोज का आयोजन करने या मृत्युभोज देने के लिए किया जायेगा, तो उस दिए गए ऋण की अदायगी से सम्बन्ध में किया गया करार निष्प्रभावी होगा तथा उसे किसी भी न्यायालय में प्रवृत नहीं किया जायेगा |

9. अधिकारिता एवं अपराधों का संज्ञान :- प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के आलावा अन्य कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के अधीन दंडनीय अपराध के लिए न तो संज्ञान करेगा या न विचारण करेगा |

10. अभियोग चलाने के लिए परिसीमा :- कोई भी न्यायालय उस तारीख से जिसको की अपराध के लिए जाने का अभिकथन किया गया है, एक वर्ष व्यतीत होने के बाद इस अधिनियम के अधीन दंडनीय अपराध पर संज्ञान नहीं करेगा |

11. नियम बनाने की शक्ति :- (1) राज्य सरकार इस अधिनियम के उपबंधों को क्रियान्विति करने के लिए नियम बनाएगी |
(2) इस धारा के अधीन बनाये गए समस्त नियम, उनके बनाये जाने के बाद, यथा शक्य शीघ्र, राज्य विधान मंडल के सदन के समक्ष कम से कम चौदह दिन पूर्व रखे जायेंगे तथा, वे ऐसे उपान्तार्नो के अधीन होंगे जो सदन के उस रूप में जिसमे उक्त प्रकार रखे गए है, या तो निरसन के द्वारा या संशोधन के द्वारा किये जायेंगे |

12. निरसन :- जयपुर प्रिवेंसन ऑफ़ फनरल फीस्टस एक्ट, 1947 ( सन 1947 का जयपुर अधि. 41) एवं राज्य के किसी भी भाग में प्रवृत तत्समान अन्य कानून एतद्द्वारा निरसित किये जाते है |

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