
मेवाड़ राजघराने की संपत्ति के 37 साल पुराने विवाद का मंगलवार को निबटारा हाे गया। अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश महेन्द्र कुमार दवे ने पूर्व महाराणा स्वर्गीय भगवत सिंह के हिस्से में 25 फीसदी संपत्ति मानी है, जबकि बाकी बची 75 प्रतिशत संपत्तियाें में उनके बेटे महेंद्र सिंह मेवाड़, अरविंद सिंह मेवाड़ और बेटी योगेश्वरी का 25-25 फीसदी हिस्सा ताे माना है, लेकिन बंटवारा नहीं हाेने तक तीनाें चार-चार साल के लिए पूरी 75 फीसदी संपत्ति का इस्तेमाल करेंगे।
इन संपत्तियों के उपयोग का सबसे पहले हक महेन्द्र सिंह का होगा, इसके बाद याेगेश्वरी और फिर अरविंद सिंह मेवाड़ का। यह सिलसिला हर चार साल के बाद बदलता रहेगा। योगेश्वरी मध्यप्रदेश के सीतामऊ पैलेस निवासी कृष्णसिंह की पत्नी हैं। संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलने पर महेंद्र सिंह मेवाड़ ने काेर्ट में याचिका लगाई थी, उसी पर उनके पक्ष में यह डिक्री पारित हुई है।
काेर्ट के फैसले के अनुसार कंपनी, न्यासाें या व्यक्तियाें काे अंतरित नहीं की गई सभी चल और अचल संपत्तियां जैसे शंभु निवास, बड़ी पाल, घासघर आदि काे तीन पक्षकार महेन्द्र सिंह, अरविंद सिंह और याेगेश्वरी चार-चार साल तक उपयाेग करेंगे। चूंकि, अभी ये संपत्तियां अरविंद सिंह के पास हैं, इसलिए उन्हें 1 अप्रैल 2021 काे उक्त संपत्तियां, लेखा और दस्तावेज महेन्द्र काे देने काे कहा गया है।
महेन्द्र सिंह 1 अप्रैल 2025 काे संपत्ति याेगेश्वरी काे देंगे। इसके बाद 1 अप्रैल 2029 काे याेगेश्वरी ये संपत्तियां अरविंद सिंह काे सुपुर्द करेंगी। सुपुर्दगी की कार्रवाई जनवरी 2021 से शुरू की जाएगी। काेर्ट ने यह भी कहा कि जाे संपत्तियां कंपनियाें और न्यासाें काे नहीं दी गई हैं, जैसे- शंभु निवास, बड़ी पाल, घासघर आदि पर व्यावसायिक गतिविधियों पर तत्काल राेक के आदेश दिए जाते हैं।
पिता भगवत सिंह के हिस्से में बेची गई संपत्तियां शामिल
भगवत सिंह के 25% हिस्से में वे संपत्तियां शामिल हाेंगी, जाे व्यक्तियाें काे बेची या दी गईं। इसमें ललित बाग नामी संपत्ति माता काे, दीवान ओदी नगेन्द्र सिंह काे, सहेलियाें की बाड़ी बाहरी गृह विजय सिंह काे, वर्ष 1972 में मदनलाल मूंदड़ा व रणजीत काैर और गुरुदयाल काैर काे दी गई बेची गई संपत्तियों शामिल हैं।
यूं समझें पूरा मामला, भगवत सिंह ने जब बेटे महेंद्र काे कानूनी हक नहीं दिया, तो पैदा हुआ विवाद
वकील नरेन्द्र सिंह के अनुसार महेन्द्र सिंह ने पिता भगवत सिंह, भाई अरविंद सिंह, मां महारानी सुशीला, दादी राजमाता विरद कुंवर के खिलाफ 22 अप्रैल 1983 काे जिला न्यायाधीश के समक्ष वाद पेश किया था। बताया कि जनवरी 1983 में भगवत सिंह ने उन्हें कानूनी अधिकार देने से इंकार कर दिया। इस कारण केस करना पड़ा।
दरअसल, 15 अप्रैल 1948 काे मेवाड़ के अंतिम महाराणा भूपाल सिंह ने भारत सरकार से अंगीकार पत्र हस्ताक्षर किए थे। सरकार ने राज्य संपत्तियाें से भिन्न भूपाल सिंह की चल-अचल संपत्तियाें की सूची की पुष्टि की थी। 4 जुलाई 1955 काे उनके निधन के बाद पुत्र भगवत सिंह की सभी संपत्तियां हिंदू अविभक्त कुटुंब की रहीं। महेन्द्र व परिवार के सभी सदस्य इस संपत्ति में विधिपूर्ण हकदार हैं।
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