21 की हो गई इक्कीसवी सदी, 2022 में नए सपने, नई उम्मीदें
ASO NEWS/31.12.2021
नववर्ष को त्यौहार के रूप में मनाने का यह सिलसिला हर वर्ष दिसम्बर माह की आखरी तारीखें आते ही शुरू हो जाता है । लोग नये वर्ष के स्वागत और हर्ष में जश्न और खुशियां मनाना शुरू कर देते है । तथा जाने वाले वर्ष को अलविदा और आने वाले नूतन समय अर्थात नववर्ष का स्वागत करते है । नववर्ष को लेकर दुनिया भर में अलग-अलग धारणाओं के साथ-साथ अलग संस्कृतियां व मान्यताएं है । नव वर्ष एक उत्सव की तरह पूरे विश्व में हर्ष और उललास के साथ मनाने की एक लम्बी परम्परा रही है ।
पश्चिमी नव वर्ष की यदि बात जाएं तो वहां भी नए वर्ष का ये त्यौहार कई वर्ष पूर्व 21 मार्च को ही मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। रोम के शासक जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला वर्ष, यानि, ईसापूर्व 46 इस्वी को 445 दिनों का करना पड़ा था।
हम सब जीवन में नवीनता को लेकर हमेशा से ही बेहद उत्सुक व लालयित रहे है । हर व्यक्ति चाहता है कि उसके जीवन में कुछ नया और अच्छा हो, उसके सपनों को उडान मिले, उसके सपने पूरे हो इन सब को लेकर हर व्यक्ति नूतन वर्ष की अगवानी करता है और अपने लिए नये संकल्प, नई मंजिलें तय करता है । नया साल अपने साथ नयी उम्मीदें , नए लक्ष्य, नए वादे, नए सपने लेकर आता है। लोग अपने आप से कुछ नए वादे करते हैं और ये कोशिश करते हैं की उन वादों को आने वाले साल में पूरा कर सके। दुनिया भर में नूतन वर्ष के स्वागत को लेकर तमाम प्राकर तैयारी की जाती है । नववर्ष के आगमन को यादगार व विशिष्ट बनाया जाता है । भारत में नए साल का स्वागत बड़ी ही धूमधाम से किया जाता है। नए साल का जश्न 31 दिसंबर की जाने वाले वर्ष कर आखिरी रात से शुरू हो देर रात तक नये वर्ष की पहली तारीख तक चलता रहता है।
इस अवसर पर यदि अन्य संस्कृतियों में नववर्ष मनाने की बात करें तो हिन्दुओं का नया साल चैत्र नव रात्रि के प्रथम दिन यानी गुड़ी पड़वा पर हर साल विक्रम संवत के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है। लेकिन वहीं भारत के विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष अलग-अलग तिथियों को भी मनाया जाता है। वहीं इस्लामिक कैलेंडर का नया साल मुहर्रम होता है।
खैर हम लोग जिस इक्कीसवीं सदी में जी रहे उसका 21वां वर्ष हमारे आंखें से ओझल होने जा रहे है । बीता वर्ष कई यादों के साथ हमसे अलविदा हो रहा है । गत एक-दो वर्षाें की भांति 2021 में भी हमने कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से संघर्ष किया । इस संघर्ष में कई अपनों को बचाया है, तो कई अपनों को खेने का भी गम रहेगा । हर वर्ष हर बार की भांति कुछ नया लेकर आता है, जो खुशी और हर्ष मनाने का अवसर देता है, वहीं कुछ अनचाहा भी उसी समय के गर्भ से निकलता है, जो हमें पीड़ा और दर्द देता है । यही समय का फसाना है । कभी खुशी कभी गम की पंक्तियां चरितार्थ होती है । हमें स्वयं, अपनों और अपने वतन के लिए बहुत कुछ चिन्तन व मनन करने की जरूरत है । कि हम इनके भले में अपना योगदान कैसे दे सकते है ।
नववर्ष पर जहां लोग अलग-अलग अपने पसंदीदा स्थानों पर जश्न मनाते है वहीं बहुत सारे लोग नए साल के मौके पर अपने रिश्तेदारों व मित्रों को ग्रीटिंग कार्ड या मैसेज के माध्यम से एक दूसरों को नववर्ष की शुभकामनाएं व बधाई संदेश प्रेषित करते है । ऐसा मना जाता है कि नए साल के दिन अच्छे काम करने से पूरा साल अच्छे कामों में जाता है। नए साल के दिन काफी लोग मंदिर, मस्जिद, चर्च, जिनालय, गुरूद्वारा आदि जाते है और प्रार्थना करते है कि हमारा यह साल अच्छा जाए। कई लोग अपने करीबी दोस्तों के साथ मिलकर नववर्ष की खुशी में पार्टियां करते हैं, मिठाई बांटते है । बड़ा हो या बच्चा सभी लोग नए साल का स्वागत बड़ी ही ख़ुशी के साथ करते है।
नए साल पर सभी लोग नई उम्मीदें, नए सपने, नए लक्ष्य, नए आईडियाज के लिए सोचते है। नए साल पर लोग पुराने साल को भूलकर नए साल की शुरुआत करते है। नया साल एक नई शुरूआत को दर्शाता है और हमेशा आगे बढ़ने की सीख देता है। लेकिन इन सब में खास बात यह है हि आने वाला हर नया वर्ष जाने वर्ष की तुलना कुछ अच्छा और नया करता है, आमजन को हर्ष देता है या फिर यूं ही रात भर की डीजे और उंचे संगीत पर की जाने वाले कसरत महज् छलावा ही साबित होती है । क्या नए वर्ष के साथ हम स्वयं में कोई सकारात्मक बदलाव लाते है या यूं ही बातें करके भूल जाते है ।
सच मायनों में नवीनता हमारे अपने भीतर है, जहां से हम कुछ नया करने का प्रण लेते है तथा उसे साकार रूप प्रदान करते है । नूतन वर्ष का हर्षाेल्लास जीवन में कुछ नूतन व बेहतर करने का अच्छा बहाना व माध्यम है, लेकिन जब तक हमारे अपने भीतर की शक्ति व चेतना का जागरण नही होता है, तब तक यह सब महज् मनोरंजन से अधिक कुछ भी नही है । साथ ही नूतन वर्ष के हर्ष और उल्लास में हमें अपनी संस्कृति, संस्कारों , मर्यादा आदि को भी अक्षरशः रखने की भी सख्त जरूरत है । हमें हर घड़ी इस बाबत् सजग व चेतनाशील रहे कि मेरे भीतर अच्छे संस्कारों व व्यवहारों के सिवाय अनर्गल व कुसंस्कारों का प्रवेश ना हो । हमें 01 जनवरी को नववर्ष में प्रवेश करना है, नए वर्ष का दिल से स्वागत करना है । लेकिन मर्यादा व संस्कृति के दायरे में रहकर हर्ष और खुशी मनानी है ।
मुकेश बोहरा अमन
साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता
बाड़मेर राजस्थान
mukesh.marsa@gmail.com
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