अमर शहीद लाला हुक्मचन्द जैन का बलिदान विस्मरणीय
- मुकेश बोहरा अमन


ASO news barmer

सन 1857 की क्रान्ति के दूसरे शहीद हुक्मचन्द जैन, अंग्रेजों ने चाचा-भतीज को सरे-आम दी फांसी

सन 1857 की क्रान्ति भारतीय आजादी के संघर्ष में मील का पत्थर रही है । सन् 57 की क्रान्ति से हिन्दुस्तान का बच्चा-बच्चा वाकिफ है । हर भारतवासी के जहन् में आजादी की प्रथम लड़ाई आज भी गुंज रही है । सन् 1857 की क्रान्ति में भारतीय सैनिकों एवं हजारों देशभक्त युवाओं ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द की। जिसमें सैंकड़ों देशभक्तों को अपना बलिदान देना पड़ा । जिसमें पहला नाम अमर शहीद मंगल पाण्ड़े का आता है । वहीं इसी क्रान्ति में शहीद होने वाले देशभक्तों में दूसरा नाम अमर शहीद लाला हुक्मचन्द जैन का आता है । जिन्होंनें अंग्रेजी शासन के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और देशभक्त युवाओं को संगठित कर संघर्ष किया ।

करीब-करीब 164 वर्ष पहले 19 जनवरी, 1858 के दिन निष्ठुर अंग्रेजों ने देशभक्त लाला हुक्मचन्द जैन, मुनीर बेग और हुक्मचन्द जैन के भतीज फकीरचन्द जैन को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। जिनका गुनाह देश की आजादी की मांग था । जिन्हें बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया । ऐसे अमन शहीदों को आज पूरा देश कोटि-कोटि नमन और अभिनन्दन करता है । 

  लाला हुकुमचंद जैन का जन्म सन 1816 में हांसी (हिसार) में दुनीचंद जैन के घर हुआ था। इनकी आरम्भिक शिक्षा हांसी में हुई । अपनी शिक्षा व प्रतिभा के बल पर इन्होंने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफ़र के दरबार में पद प्राप्त कर लिया। सन 1841 में मुगल बादशाह ने इनको हांसी और करनाल जिले के इलाकों का कानूनगो व प्रबंधकर्ता नियुक्त किया। सात साल तक मुगल बादशाह के दरबार में रहे। इसके बाद हांसी लौट आए। अमर शहीद लाला हुकुमचंद जैन का परिवार वर्तमान में हरियाणा के हांसी (हिसार) में ही रहता है । जहां डडल पार्क के सामने उनकी हवेली है। 19 जनवरी को लाला हुकुम चंद जैन का बलिदान दिवस हांसी की डडल पार्क में मनाया जाता है । 

  सन 1857 की क्रांति में लाला हुकुमचंद जैन ने बेहद कम संसाधनों के बावजूद अंग्रेजी सरकार के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजाया और अंग्रेजों के खिलाफ आमजन में देशभक्ति की भावना का संचार किया । उन्होंने फारसी भाषा में एक पत्र लिखकर बादशाह बहादुरशाह जफर से सहायता मांगी। यह गुप्त पत्र अंग्रेजों के हाथ लग गया। इसी बीच दिल्ली पर अंग्रेजों ने कब्जा कर मुगल सम्राट को गिरफ्तार कर लिया। 15 नवंबर 1857 को अंग्रेजों के हाथ लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग के हस्ताक्षरों वाला वह पत्र लग गया। दिल्ली के कमिश्नर सीएस सांडर्स ने हिसार के कमिश्नर नव कार्टलैंड को वह पत्र भेजते हुए कठोर कार्रवाई के लिए लिखा। 

  इसके आधार पर अंग्रेजी सरकार ने लाला हुकुमचंद जैन और उनके साथी मुनीर बेग को उनके घर के सामने ही 19 जनवरी 1858 को फांसी पर लटका दिया। लाला हुकुमचंद के भतीजे फकीरचंद को अदालत से बरी होने के बाद भी फांसी दे दी गई। लाला हुकुमचंद जैन के शव को धर्म विरूद्ध जलाने की जगह दफनाया गया जबकि मुनीर बेग के शव को दफनाने की बजाय जलाया गया । वहीं लाला हुक्मचन्द जैन की सम्पति का नीलाम कर दिया गया । 

  सन् 1857 की क्रान्ति के ऐसे बेजोड़ नायकों ने अपने वतन की आजादी की खातिर अपने प्राणों की आहूति दे दी । ऐसे देशभक्त वीरों को देश हमेशा याद करता रहेगा । अमर शहीद लाला हुक्मचन्द जैन का देश की आजादी के लिए दिया गया बलिदान सदियों-सदियों के लिए अविस्मरणीय रहेगा ।ऐसे में देशभक्तों की शहादत व उपस्थिति से ही भारत आज स्वतंत्रता की पताका फहरा रहा है । उनकी स्मृति में अलग-अलग सथानों पर स्मारक आदि बने हुए है । लाला हुक्मचन्द जैन जैसे अमर शहीदों की शहादत को भारत के हर गांव-गांव, शहर-शहर में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाना चाहिए ताकि वर्तमान पीढ़ी को हमारे स्वर्णिम इतिहास व अमर वीरों के बारे में जानकारी मिल सके तथा वे उनकी देशभक्ति से प्रेरणा ले सके । 

मुकेश बोहरा अमन
साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता

Advertisement

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

 
Top