आजकल रामायण को ले कर एक पोस्ट बहुत चल रही है , जिसमे रामचरित्रमानस की कुछ चौपाई और दोहों को करोना से जोड़ा जा रहा है । जबकि इनका वास्तविक अर्थ वह बिल्कुल नही है जो बताया जा रहा है। आइये उनके असल अर्थ पर नजर डालें.

सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं॥

भावार्थ:-जो मूर्ख मनुष्य सब की निंदा करते हैं, वे चमगादड़ होकर जन्म लेते हैं।
इस का अर्थ है कि जो व्यक्ति सबकी निंदा करता है वह चमगादड़ होकर जन्म लेगा , उसका जीवन चमगादड़ जैसा होगा अर्थात जिस प्रकार चमगादड़ का मल मूत्र स्वयं उसके ही ऊपर गिर कर उसे ही दूषित करता है उसी प्रकार निंदक द्वारा की गई निंदा भी स्वयं निंदक के चरित्र को ही दूषित करती है , जिस प्रकार चमगादड़ दुनिया को उल्टी दृष्टि से देखता है वैसे ही निंदक भी दूसरों के व्यवहार को उल्टी दृष्टि से देखता है अर्थात वह दूसरो की अच्छाइयों में भी बुराई खोजता है ।

मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥
भावार्थ:-सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान) है। उन व्याधियों से फिर और बहुत से शूल उत्पन्न होते हैं। काम वात है, लोभ अपार (बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोध पित्त है जो सदा छाती जलाता रहता है ।



जब गरुड़जी ने कागभुशुंडीजी से मानस रोगों के बारे में पूछा उस प्रसंग की यह चौपाई है , जहां कागभुशुंडीजी काम , क्रोध , लोभ की तुलना , वात , पित्त और कफ जनित रोगों से करते है ।

सनातन धर्म तीन शरीर होना बताता है ,
पहला कारण शरीर , जिसमे आत्मा फलीभूत होती है , इस शरीर का रोग स्वयं को शरीर समझना है जिसे #अविद्या कहते है ।

दूसरा सूक्ष्म शरीर है जिसमे मन आदि अंतःकरण आते है , काम , क्रोध , लोभ आदि इस सूक्ष्म शरीर के रोग है जिन्हें #आधि कहते है ।

तीसरा स्थूल शरीर है , वात ,पित्त , कफ , के असंतुलन और संक्रमण , संघात से इसमे रोग उत्तपन्न होते है जिन्हें #व्याधि कहा जाता है ।

जब कोई मनुष्य अविद्या , आधि एवं व्याधि इन तीनो रोगों से मुक्त होता है तब वह स्वरूप में अथवा स्व में स्थित होता है जिसे #स्वस्थ पुरुष कहते है ।

✍️Ashish Piplonia
25 Apr 2020

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