मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए हर दिन डॉक्टर मौजूद रहते हैं। आज इनका विशेष दिन है तो इनके मरीजों के साथ खास रिश्ते, संवेदनशीलता और समर्पण की बात तो होनी ही चाहिए। जयपुर के हर उस डॉक्टर को नमन, जिन्होंने अपनी शपथ निभाई। आज पढ़िए कोरोनाकाल में डॉक्टर्स कैसे अपनी हिप्पोक्रेटिक ओथ के हर वाक्य पर खरे उतरे।

32 डॉक्टरों को कोरोना हुआ, ठीक हुए फिर काम पर लौटे

एसएमएस के सर्जन महेश नगर निवासी डॉ. सोमेंद्र बंसल सर्जरी के दौरान 16 अप्रैल को कोरोना संक्रमित हो गए। 14 दिन बाद रिकवर होकर मई में ड्यूटी पर लौटे डॉ. बंसल 15 सर्जरी और कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि एसएमएस में घाटगेट से आए मरीज को देखा था। आंतों में परेशानी थी।

पीपीई किट, मास्क, ग्लव्स सभी सावधानी बरती। मरीज की आंत फट चुकी थी और जल्द ऑपरेशन की जरूरत थी। हमने आंतों का ऑपरेशन कर उसकी जान तो बचा ली, लेकिन जब मरीज के कोरोना पॉजिटिव होने की जानकारी मिली तो सभी ने सैंपल दिए।

मैं और अन्य 2 साथी पॉजिटिव निकले। मेरे सामने परिवार के सैंपल लिए गए तो तनाव चरम पर था। हमने हिम्मत नहीं हारी और अब फिर से मरीजों को देख रहे हैं। अब तक 32 डॉक्टरों समेत 180 चिकित्सा कर्मी पॉजिटिव आ चुके हैं। 165 डिस्चार्ज हो चुके हैं।

डॉक्टरों की पहल पर शव ले जाने को माने एम्बुलेंस चालक

कोरोना के भय से जब अपनों तक ने शव को कंधा देने से इनकार कर दिया तो डॉक्टर भगवान बनकर आए और अपनों को खो चुके लोगों की मदद की। 25 अप्रैल को एसएमएस अस्पताल में अलवर-बहरोड़ के एक व्यक्ति की डेडबॉडी को बाहर खड़ी एंबुलेंस ले जाने को तैयार नहीं हुई। यह महामारी का खौफ ही था कि जिन शवों को ले जाने के लिए निजी एंबुलेंस वाले दौड़े चले आते थे, वो कन्नी काटते रहे। रोते-बिलखते परिजन मायूस नजर आए।

थक-हार वो अस्पताल के डॉ. सुमंत दत्ता के पास पहुंचे तो उन्होंने पहले खुद के प्रशासन, फिर पुलिस और कलेक्टर के यहां हालात सुधारने की पहल की। 27 अप्रैल को भी तीन डेड बॉडी को ले जाने के लिए एंबुलेंस तैयार नहीं हुई तो डॉक्टरों की पहल पर एडिशनल कमिश्नर पुलिस ने मौके पर एसएचओ को भेजकर हालात ठीक कराए।

डोनर नहीं मिले तो डॉक्टरों ने ही 35 मरीजों को दिया खून

कोरोनाकाल में डोनर नहीं मिले तो डॉक्टरों ने आगे बढ़कर खून का रिश्ता निभाया। इतना ही नहीं कोरोना सर्वाइवर 2 डॉक्टरों ने खुद का प्लाज्मा भी डोनेट किया। एसएमएस ट्रॉमा सेंटर में हादसे में घायल मरीज को खून की कमी से तड़पते देख रेजिडेंट डॉक्टर्स ने मुहिम छेड़ी कि कोई ब्लड की कमी से परेशान ना हो। 3 महीने में 35 मरीजों की जान रेजिडेंट डॉक्टर्स अपना खून देकर बचा चुके हैं।

ट्रॉमा सेंटर में आए एक्सीडेंट केस के अलावा सिजेरियन डिलीवरी वाली महिला और थैलेसीमिया पीड़िति बच्चों के लिए भी रक्तदान किया। ब्लड देने वालों में जार्ड के ऑर्थोपेडिक के डॉ. अजीत, माइक्रोबायोलॉजी के डॉ. नटवर स्वर्णकार, जनरल सर्जरी के डॉ. मिलन खत्री, बायोकेमेस्ट्री के डॉ. कर्मवीर, ऑर्थोपेडिक के डॉ. आशीष गुप्ता, डॉ. नवेन्दु रंजन, गेस्ट्रोइंटेरोलॉजी के डॉ. कपिल और एनेस्थीसिया की डॉ. अल्का शामिल हैं।



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God is here; Infected with surgery, he recovered and performed 15 surgeries; Donated plasma blood
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