(श्याम राज शर्मा). प्रदेश के 233 ब्लॉक लेवल पानी टेस्टिंग लैब बनाने और संभाव-जिला वार की लैब में सैंपल की क्राॅस वेरिफिकेशन के काम में बड़ी गड़बड़ हुई है। यह काम नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम (एनआरडब्ल्यूपी) में हुआ है। स्टेट लेवल स्टेयरिंग कमेटी के चेयरमेन से बिना अनुमोदित करवाए ही टेंडर हो गए।
प्रशासनिक व वित्तीय मंजूरी लिए बिना ही निविदा हो गई। लैब बनाने का काम तय समय पर पूरा नहीं हुआ, इसके बावजूद वर्कऑर्डर का समय बढ़ाते रहे। यह काम करीब 35 करोड़ रुपए का है। कॉन्ट्रेक्टरों को भुगतान डब्ल्यूएसएसओ ने किया है। जलदाय विभाग के प्रमुख सचिव की ओर से चीफ इंजीनियर सीएम चौहान, चीफ केमिस्ट राकेश माथुर व अधीक्षण अभियंता अरूण श्रीवास्तव को नोटिस देने के बाद इस गड़बड़ का खुलासा हुआ है।
प्रमुख सचिव ने तीनों उच्च अधिकारियों को दिए नोटिस में सख्त टिप्पणी करते हुए लिखा है कि प्रथम दृष्टया कार्यादेश व संबंधित प्रभावी नियमों में गंभीर व जानबूझकर की गई गलतियां दिखती है। प्रकरण में गंभीर रूप से वित्तीय अनियमित भुगतान प्रतीत होता है। डब्ल्यूएसएसओ के तत्कालीन निदेशक अरूण श्रीवास्तव की फर्मों का समय बढ़ाने व पेमेंट करने में प्रमुख भूमिका बताई जा रही है। जलदाय मंत्री बीडी कल्ला का कहना है कि मामले पर जांच हो रही है। जांच में तथ्यों के आधार पर अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
ब्लाॅक लेवल पर वाटर लैब में ये खामियां, प्रशासनिक-वित्तीय स्वीकृति नहीं मिली
- प्रशासनिक व वित्तीय स्वीकृति के बिना ही टेंडर हो गए।
- एनआईटी जारी कर अप्रूव करने, वर्कऑर्डर जारी करने, भुगतान करने सहित अन्य फैसले प्रमुख सचिव अध्यक्षता वाली जनरल बाॅडी या सरकार स्तर पर करने थे, लेकिन डब्ल्यूएसएसओ की मैनेजमेंट कमेटी ने निर्णय ले लिया।
- लैब बनाने व सैंपल जांच के कार्य को अंतिम एक्सटेंशन मार्च 2016 तक दिया जा चुका था। लेकिन इसके बाद नए सिरे से 2019 में कार्यावधि बढ़ा कर्र कॉन्ट्रेक्टर फर्मों को अनुचित लाभ दिया।
- पानी जांच की लैब बनाने व सैंपल जांचने के कार्य के लिए 2 साल का वर्कऑर्डर दिया था। लेकिन डब्ल्यूएसएसओ की मैनेजमेंट कमेटी ने फर्मों व कंपनियों को फायदा देते हुए समय बढ़ा दिया।
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