सन्तों की उपकारी वाणी में है जीवन का अनमोल सार :- त्रिभुवन सिंह
जैन समाज का सामूहिक क्षमापना कार्यक्रम हुआ आयोजित, चतुर्विघ संघ ने किया एक-दूसरे से मिच्छामि दुक्कडम्,

बाड़मेर राजस्थान। 07.09.2025
जैन धर्म के सबसे बड़े पर्व पर्युषण महापर्व के बाद जैन श्री संघ, बाड़मेर के तत्वावधान में रविवार को श्री गुणसागरसूरि साधना भवन, बाड़मेर में सामूहिक क्षमापना का विशिष्ट व मार्मिक कार्यक्रम आयोजित हुआ। कार्यक्रम में प. पू. खरतरगच्छाधिपति आचार्यश्री जिन मणिप्रभ सूरीश्वरजी म.सा., प. पू. मुनिराजश्री यशवंतकुमारजी म.सा., प. पू. साध्वीश्री डॉ. विद्युत्प्रभाश्री जी म. सा. एवं साध्वीश्री भावगुणाश्री जी म.सा. आदि ठाणा की पावन निश्रा रही। तथा बाड़मेर रावत त्रिभुवन सिंह बतौर मुख्य अतिथि सहित जैन गणमान्य के नागरिक उपस्थित रहे। 
जैन श्रीसंघ, बाड़मेर के महामंत्री किशनलाल वडेरा ने बताया कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व के बाद रविवार को साधना भवन में सकल जैन समाज का सामूहिक क्षमापना कार्यक्रम आयोजित हुआ। कार्यक्रम का आगाज करूणा के सागर, तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा के समक्ष दीप-प्रज्ज्वलन व गुरू-भगवन्तों के प्रति सामूहिक गुरू-वन्दन से हुआ। तत्पश्चात श्रीसंघ की ओर से कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बाड़मेर रावल त्रिभुवन सिंह एवं अग्रवाल समाज अध्यक्ष लूणकरण सिंहल का तिलक, माला, साफा व श्रीफल से बहुमान किया गया। कार्यक्रम में जैन श्रीसंघ, बाड़मेर के अध्यक्ष एडवोकेट अमृतलाल जैन ने सकल संघ व मेहमानों का स्वागत करते हुए गुरू-भगवन्तों, सकल संघ व अतिथियों से वर्ष पर्यंन्त हुई भूलों व गलतियों के लिए मिच्छामि दुक्कडम किया। वहीं अचलगच्छ चातुर्मास समिति के अध्यक्ष दिनेश सिंघवीं ने साध्वीश्री भावगुणश्रीजी मसा के क्षमा सन्देश का पठन किया।
प. पू. खरतरगच्छाधिपति आचार्य भगवन्तश्री जिन मणिप्रभ सूरीश्वरजी मसा ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि व्यक्ति को सुख जीवन के लिए हमेशा बैर-भाव व बुराईयों से दूर रहना चाहिये। व्यक्ति को सुख के लिए जीवन के मूल स्वभाव की पहचान करते हुए क्रोध, लोभ, लालच आदि विभावों से बचने की जरूरत है। गुरूदेवश्री ने कहा कि क्षमापना का भाव मनुष्य जीवन के कल्याण का आधर बिन्दु है। हमें क्षमा करने व मांगने में हमेशा तत्पर रहना चाहिये। 
प. पू. मुनिराजश्री यशवन्त कुमारजी मसा ने कहा कि हमें किसी प्रकार के वाद-विवाद आदि को लम्बा नही खींचते हुए उसे तुरन्त क्षमा याचना के द्वारा निपटाना चिहये। मुनिराज ने अलग-अलग उदाहरण देते हुए कहा कि जीवन में भूलें, गलतियां हो जाती है, उसका निदान क्षमापना है। हमें क्षमा वाणी को जीवन उतारने की जरूरत है।
प. पू. साध्वीश्री डॉ. विद्युत्प्रभाश्रीजी मसा ने कहा कि क्षमा याचना से सब कुछ निर्मल हो जाता है, चाहे वह रिश्ता हो या व्यक्ति का मन। हमें किसी गलती या भूल के लिए क्षमा मांगने में घबराना नही चाहिये। सही समय पर क्षमा याचना से रिश्ते-नाते व आपसी व्यवहार बच जाते है। साध्वीश्री ने कहा कि हमें सबसे प्रथम अपने पार्टनर अर्थात् पति/पत्नी से क्षमा याचना करनी चाहिये। 

बाड़मेर रावत त्रिभुवन सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि पूजनीय साधु-साध्वीश्री की वाणी को सुनकर उसे अपने जीवन में उतारना, उसे व्यवहार में लाना गुरू-वनों की सार्थकता है। अन्यथा सुन लिया और यहां से निकले फिर वैसा का वैसा। सिंह ने कहा कि हम हमारे दैनिक जीवन में भी क्षमा जैसे विशिष्ट व प्रभावकारी गुण का आचरण करें। उससे सबको लाभन्वित करें। सिंह ने कहा कि ऐसे क्षमापना व गुरू-भगवन्तों की कल्याणकारी वाणी के आयोजन पूरे बाड़मेर, पूरी 36 कौम के लिए होने चाहिये। 
कार्यक्रम में अचलगच्छ जैन श्रीसंघ के अध्यक्ष दुर्गादास पड़ाईयां, खरतरगच्छ चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष अशोक धारीवाल, तेरापंथ धर्मसभा की ओर से गौतम बोथरा, स्थानकवासी श्रावक संघ के उपाध्यक्ष जितेन्द्र बांठिया, युवा वक्ता दिनेश भंसाली सहित कई वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किये। वहीं ज्योति सिंघवीं, श्रद्धा मालू व सम्पतराज धारीवाल ने गीतिका प्रस्तुत की ।

जैन श्रीसंघ, बाड़मेर के सामूहिक क्षमापना कार्यक्रम में साधु-साध्वी भगवन्तों सहित विभिन्न समाजों के गणमान्य नगारिक, जैन समाज के भाई-बन्धु, माताएं-बहिनें उपस्थित रही। 

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