
कांग्रेस की सरकार गहलोत सरकार फिर अपना इतिहास दोहरा रही है। 2008 में गहलोत ने बसपा के सहयोग से सरकार बनाई गई थी। 2009 में बसपा के सभी 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल किया गया था। इस बार भी 6 विधायक हैं जिन्हें कांग्रेस में शामिल किया गया है। संयोग की बात है कि बसपा के 2008 में भी छह विधायक थे और इस बार भी 6 विधायक हैं। 2008 में शुरुआत में बसपा के विधायक बाहर से समर्थन देते रहे लेकिन बाद में कांग्रेस में शामिल कर लिया गया। राजेंद्र सिंह गुढ़ा 2008 में बसपा से ही विधानसभा पहुंचे थे। गुड़ा को गहलोत सरकार में राज्यमंत्री का पद मिला था। इस बार भी गुड़ा उसी राह पर चल रहे हैं।
कांंग्रेस सरकार के पिछले कार्यकाल 2008 से 2013 के दौरान भी कांग्रेस में छह बसपा एमएलए का विलय हुआ था। उस दौरान भी भाजपा के पदाधिकारी जसवंत सिंह व बसपा के पदाधिकारी भगवान सिंह बाबा ने स्पीकर के समक्ष बसपा के छह एमएलए के कांग्रेस में विलय को चुनौती देते हुए उन्हें अयोग्य घोषित कर विधानसभा की सदस्यता रद्द करने की गुहार की थी। लेकिन स्पीकर ने दल बदल कानून की धारा 6 के तहत भाजपा व बसपा के पदाधिकारियों की याचिकाओं को मेंटेनेबिलिटी (सुनवाई के योग्य नहीं मानना) के आधार पर खारिज कर दिया।
तत्कालीन व मौजूदा एमएलए राजकुमार शर्मा की ओर से अधिवक्ता पूनमचंद शाह व श्याम सुंदर शर्मा ने स्पीकर के समक्ष बसपा एमएलए को अयोग्य घोषित करने वाली याचिकाओं का यह कहते हुए विरोध किया कि वे सुनवाई के लिए मेंटेनेबल नहीं हैं।
अधिवक्ताओं की दलील थी कि दल बदल कानून के तहत विधानसभा सदस्यों को अयोग्य घोषित करने की शिकायत मौजूदा विधानसभा सदस्य के द्वारा की जानी चाहिए थी। लेकिन इस मामले में बसपा एमएलए को अयोग्य घोषित करने वाली याचिकाएं मौजूदा विधानसभा सदस्यों द्वारा दायर नहीं की हैं। इसलिए उन्हें खारिज किया जाना चाहिए। यह मामला विधानसभा स्पीकर व हाईकोर्ट के समक्ष करीब चार साल दो महीने तक लंबित रहा।
तब, हाईकोर्ट ने स्पीकर को वापस भेज दिया था मामला
स्पीकर के समक्ष बसपा एमएलए को अयोग्य घोषित करने वाली याचिकाएं लंबित रहने के दौरान प्रार्थियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि स्पीकर को निर्देश दिए जाएं कि वे मामले की जल्द सुनवाई करें। जिस पर हाईकोर्ट ने मामले को पुन: स्पीकर के समक्ष सुनवाई के लिए वापस लौटा दिया था।
2008 में विधानसभा में बसपा के ये छह विधायक थे
1. नवलगढ़ से राजकुमार शर्मा
2. उदयपुरवाटी से राजेंद्र सिंह गुढ़ा
3. गंगापुर से रामकेश मीणा
4. सपोटरा से रमेश मीणा
5. दोसा से मुरारीलाल मीणा
6. बाड़ी से गिर्राजसिंह मलिंगा बसपा से टिकट पर विधानसभा पहुंचे थे। बसपा के और गोलमादेवी के समर्थन से कांग्रेस की सरकार बनाई गई थी।
2020 में भी बसपा के छह ही विधायक, अभी कांग्रेस के साथ
वर्तमान में राजस्थान विधानसभा में बसपा के टिकट पर जीतकर ये विधायक पहुंचे।
1. उदयपुरवाटी से राजेंद्र सिंह गुढ़ा
2 नदबई से जोगिंदर सिंह अवाना
3.किशनगढ़ बास से दीपचंद
4. करौली से लाखन सिंह
5. नगर से वाजिब अली
6. तिजारा से संदीप कुमार
अभी ये सभी कांग्रेस के साथ विलय हैं।
हाईकोर्ट का यथास्थिति आदेश, पक्षकार अर्जी लगाएं तभी होगी सुनवाई
बर्खास्त डिप्टी सीएम सचिन पायलट सहित उनके गुट के बागी 19 विधायकों को दिए अयोग्यता नोटिस विवाद मामले में हाईकोर्ट का नोटिस पर यथास्थिति बरकरार है। विधानसभा स्पीकर ने हाईकोर्ट के 24 जुलाई के अंतरिम अंतिम आदेश को चुनौती देने का हवाला देते हुए 21 जुलाई के अंतरिम आदेश को चुनौती देने वाली मौजूदा एसएलपी को वापस ले लिया था।
हाईकोर्ट का इस मामले में यथास्थिति का आदेश तब तक बरकरार रहेगा जब तक कि सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में कोई आदेश न हो जाए या हाईकोर्ट मामले में पुन: सुनवाई कर कोई अन्य आदेश नहीं दे देता। ऐसे में फिलहाल इस मामले में सचिन पायलट गुट के खिलाफ स्पीकर की ओर से मौजूदा नोटिस के संबंध में अयोग्यता को लेकर कोई कार्रवाई होना संभव नहीं है।
हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई फिलहाल होने की संभावना नहीं है। हाईकोर्ट ने मामले में सचिन पायलट सहित अन्य एमएलए की याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर करते हुए पक्षकारों को कहा था कि वे यदि केस की जल्द सुनवाई करवाना चाहते हैं तो इसके लिए अर्जी दायर कर सकते हैं।
ऐसे में पक्षकार सुनवाई के लिए अर्जी दायर करेंगे तब ही सुनवाई होगी। हाईकोर्ट ने फैसले में केन्द्र सरकार सहित अन्य पक्षकारों को लिखित बहस पेश करने के लिए कहा था। हाईकोर्ट में केवल चीफ व्हिप महेश जोशी की ओर से ही जवाब आया है। केन्द्र सरकार सहित अन्य के जवाब बाकी हैं।
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