शहर की व्यवस्था संभालने वाला नगर निगम इन दिनाें खुद तंगहाली का शिकार है। इन दिनाें नगर निगम की आर्थिक हालत ठीक नहीं है। इसका खामियाजा कर्मचारियाें काे उठाना पड़ रहा है। नगर निगम आर्थिक बाेझ बढ़ने के डर से 2242 सफाई कर्मचारियाें का प्राेबेशन बढ़ाता जा रहा है। इनका प्राेबेशन पीरियड 3 माह पहले ही पूरा हाे चुका है, लेकिन उन्हें अभी तक परमानेंट नहीं किया गया है। जानकाराें का कहना है कि सफाई कर्मियाें काे परमानेंट करते ही उन्हें बढ़ी हुई तनख्वाह देनी हाेगी, इसी डर से निगम अधिकारी मामले काे टाल रहे हैं।
प्राेबेशन पीरियड में एक सफाई कर्मी का वेतन लगभग 11 हजार हाेता है। परमानेंट हाेते ही वेतन औसतन 20 हजार प्रतिमाह हाे जाता है। निगम सफाई कर्मियाें काे परमानेंट करता है ताे उस पर हर महीने 2 कराेड़ से ज्यादा का अतिरिक्त भार पड़ेगा। हालांकि निगम जब भी इन्हें परमानेंट करेगा उसे एरियर देना पड़ेगा। वहीं निगम के स्थाई कर्मियाें का डीए भी जुलाई 2019 से बकाया चल रहा है। इस मद में निगम के ऊपर करीब 1200 कर्मचारियाें का लगभग 3 कराेड़ का बकाया है। वहीं रिटायर हाेने वाले कर्मचारियाें की करीब 4 कराेड़ की ग्रेच्युटी भी नहीं दी जा रही है।
काेराेनाकाल में वेतन भी लेट मिल रहा है। पहले 1 से 4 तारीख तक वेतन आ जाता था। अब 11 तारीख काे तनख्वाह मिल रही है। नगर निगम में वर्ष 2012 में 1165 और वर्ष 2018 में 1077 सफाई कर्मचारियाें की भर्ती हुई थी। वर्ष 2012 वाली भर्ती पर ऑब्जेक्शन आ गया था और फिर सभी काे जुलाई व अगस्त 2018 में ज्वाॅइनिंग दी गई थी। प्राेबेशन पीरियड में इन कर्मचारियाें काे प्रतिमाह 11165 रुपए वेतन मिलता है, जबकि परमानेंट हाेने पर करीब 20 हजार रुपए मिलेंगे।
इन कर्मचारियाें का प्राेबेशन पीरियड जुलाई व अगस्त में पूरा हाे चुका है। ऐसी भर्ती काेटा के अलावा बारां, छबड़ा व प्रदेश की अन्य नगर निगम व पालिकाओं में भी हुई थी। बाकी निगम और पालिकाओं ने कर्मचारियाें काे परनानेंट कर दिया, लेकिन काेटा नगर निगम में अभी तक केवल प्राेसेस चल रहा है। ये कब पूरा हाेगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
चुंगी का 150 कराेड़ का अनुदान रुकने से बढ़ी मुश्किल
निगम की आय का माेटा हिस्सा चुंगी पुरर्भरण के नाम पर राज्य सरकार से मिलता है। इस मद में हर साल करीब 150 कराेड़ मिलते हैं। ये पैसा ट्रेजरी में आता है और नगर निगम अपने बिल पास हाेने के लिए ट्रेजरी में भेजता है। इस समय काेराेना की वजह से सरकार का पूरा ध्यान केवल मेडिकल फैसिलिटी पर है इसलिए ट्रेजरी से समय पर बिल पास नहीं हाे रहे हैं। हालत ये है कि नगर निगम कर्मचारियाें के कर्मचारियाें के डीए का बिल भी ट्रेजरी से पास नहीं हाे रहा है।
कर्मचारियाें काे जुलाई 2019 से मार्च 2020 तक का डीए मिलना था, लेकिन अभी तक आधे कर्मचारियाें काे ही मिल पाया है। औसत एक कर्मचारी काे 25 हजार रुपए डीए मिलना है। काेराेना काल में पीएल और अन्य कटाैतियां भी हाे रही हैं। इसके विपरीत ऑटाेनाेमस बाॅडी यूआईटी भी है, जाे अपने खर्च खुद की आय से निकालती है। यूआईटी अपनी आय पर ज्यादा फाेकस करती है।
इधर, टिपर चालकाें काे 4 महीने से नहीं मिला वेतन
निगम की आर्थिक स्थिति का असर केवल कर्मचारियाें पर ही नहीं बल्कि शहर की जनता पर भी पड़ रहा है। शहर के 35 वार्डाें में टिपर चलाने वाले चालकाें व हैल्पर काे पिछले 4 माह से वेतन नहीं मिला।
इस कारण उन्हाेंने गुरुवार से हड़ताल कर दी। सभी ने टिपर काे संभागीय आयुक्त कार्यालय के सामने खड़ा कर दिया। अखिल भारतीय सफाई मजदूर कांग्रेस के प्रदेश महासचिव सुनील नरवाल भी माैके पर पहुंचे। उन्हाेंने ठेकेदार बाॅबी और आयुक्त वासुदेव मालावत से बात की। दाेनाें ही पक्ष एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालते रहे। ठेकेदार का कहना है कि मुझे निगम से पैसा नहीं मिला, मेरे बिल पास नहीं हाे रहे हैं।
वहीं निगम का कहना है कि ठेकेदार द्वारा समय पर बिल नहीं दिए जाते हैं। इसलिए उसके बिल देर से पास हाेते हैं। दाेनाें एजेंसियाें के बीच विवाद जाे भी हाे, लेकिन विवाद की जड़ में पैसा है और इससे शहर की सफाई व्यवस्था बिगड़ रही है।
यूआईटी की आमदनी 5 गुना ज्यादा
नगर निगम
पिछले वित्त वर्ष में निगम काे लगभग 80 कराेड़ की आय हुई थी। वहीं वेतन पर ही हर साल 120 कराेड़ रुपए खर्च हाेते हैं। सफाई पर 80 कराेड़ और सड़काें की मरम्मत व अन्य विकास कार्याें पर करीब 50 कराेड़ सालाना खर्च हाेते हैं। शहर में विकास के सभी बड़े कार्य यूआईटी के जिम्मे हैं। निगम काे यूडी टैक्स, प्लाॅट्स की बिक्री, मैरिज गार्डन, हाेटल, रेस्टाेरेंट, विज्ञापन हाेर्डिंग, माेबाइल टावर, चंबल गार्डन, हाड़ाैती गार्डन, साइकिल स्टैंड, उम्मेद सिंह स्टेडियम और मैरिज गार्डन आदि से आय हाेती है, लेकिन इसका टारगेट कभी पूरा नहीं हाे पाता है। पिछले साल निगम का बजट 633.93 कराेड़ का था।
यूआईटी
यूअाईटी के पास खर्च बड़े हैं ताे आय भी अच्छी है। इसके लिए वे शहर के बीच से लेकर आसपास तक की जमीनाें काे तलाशकर उन पर काॅलाेनियां काटते हैं। यूआईटी काे जमीनाें से सबसे ज्यादा आय हाेती है। इसके उन जमीनाें पर बनने वाली काॅलाेनियाें के मकानाें के नाम ट्रांसफर, लीज डीड, यूडी टैक्स, सीवी गार्डन, गणेश उद्यान, ऑडिटाेरियम, मैरिज गार्डन आदि से आय हाेती है। निगम की बजाय यूआईटी ने अपने मैरिज गार्डन काे काफी अच्छा मेंटेन कर रखा है, इसलिए उनसे आय भी अधिक हाेती है। यूआईटी का पिछले साल कुल बजट 963.77 कराेड़ का था। जबकि कुल आय 413 कराेड़ हुई थी। यूआईटी सरकार को भी लाभांश देती है।
हमारे पास केवल जिम्मेदारियां हैं : मालावत
बजट और आय के लिए हमारे पास साेर्स कम हैं। यूआईटी के पास जमीनें हैं और हमें दाे-चार प्लाॅट और जिम्मेदारियाें के नाम पर पूरी काॅलाेनी मिलती है। वहां की सफाई से लेकर राेड लाइटें और भीतर की सड़कें तक निगम काे मिलती हैं। कर्मचारियाें काे परमानेंट करने का कार्य प्राेसेस में है, जल्दी ही ये कार्य पूरा हाे जाएगा। - वासुदेव मालावत, आयुक्त, नगर निगम उत्तर
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