हाईकोर्ट ने प्रदेश की नगर निकाय यानि नगर निगम,नगर परिषद व नगर पालिका में महापौर व सभापति के पदों पर एससी व एसटी वर्ग के आरक्षण को कुछ चुनिंदा सीटों तक ही हमेशा सीमित रखने
पर राज्य सरकार व चुनाव आयोग से जवाब मांगा है।


अदालत ने मामले में सीएस सहित प्रमुख स्वायत्त शासन सचिव व मुख्य चुनाव आयुक्त से पूछा है कि नगर निकाय चुनाव में हर बार चुनिंदा सीटों तक ही आरक्षण को क्यों सीमित रखा जा रहा है। सीजे इन्द्रजीत महान्ति व जस्टिस महेन्द्र गोयल की खंडपीठ ने यह अंतरिम निर्देश गुरुवार को बांरा नगर परिषद के निवर्तमान सभापति कमल राठौर अन्य की याचिका पर दिया।

अधिवक्ता अभिनव शर्मा ने बताया कि याचिका में राजस्थान नगर पालिका अधिनियम, 2009 की धारा 43 को चुनौती दी गई है। इस धारा के अनुसार ही शहरी निकाय में एससी व एसटी का आरक्षण उनकी जनसंख्या की अधिकता तक ही सीमित किया है।

याचिका में हाईकोर्ट से की यह गुहार
याचिका में हाईकोर्ट से गुहार की है कि दोनों आरक्षित वर्ग को प्रदेश की हर नगर निगम, पालिका, परिषद या कौंसिल में मेयर या सभापति का पद एक बार जनसंख्या के आधार पर रोस्टर के हिसाब से मिलना चाहिए। ऐसा करने से हमेशा नगर निकाय चुनाव में केवल चुनिंदा सीटों पर ही आरक्षण का दायरा सीमित नहीं रहेगा।

यह कहा है याचिका में

याचिका में कहा कि पिछले 40 सालों में हुए चुनावों में एससी व एसटी वर्ग की जनसंख्या व रोस्टर के अनुसार ही बारी-बारी से सभी निगम, परिषदों व पालिकाओं में मेयर व सभापति के पद आरक्षित रखने चाहिए थे, लेकिन ऐसा करने की बजाय राजनीतिक कारणों से इनके लिए आरक्षण को कुछ चुनिंदा सीटों तक ही सीमित कर दिया जाता है। इस कारण से न तो इन सीटों पर कभी सामान्य वर्ग का प्रत्याशी आता है और न ही दूसरी सीटों पर आरक्षित वर्ग को आरक्षण दिया जाता है।



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Why reservation should always be done on select seats of Mayor and Chairman in body elections
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