सेंट्रल म्यूजियम अल्बर्ट हॉल में डूबकर बर्बाद हुई हमारी ऐतिहासिक महत्व की दुर्लभतम चीजों का संरक्षण अभी तक शुरू नहीं हो पाया है। जिन ऑब्जेक्ट को तत्काल इलाज की जरूरत थी, उनके लिए पूरे साढ़े तीन महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है। इस अवधि में इनका नुकसान और ज्यादा ही हो रहा है। इसके बावजूद पाषाण बना सिस्टम आगे नहीं आ रहा है।
पुरातत्व विभाग अपने हर काम के लिए आमेर विकास प्राधिकरण पर निर्भर है। सामने आया है कि काम के लिए यहां से प्रशासनिक स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन मसला फाइनेंस की मंजूरी के चलते अटका हुआ है। चूंकि पुरातत्व विभाग ने संरक्षण कार्यों के लिए सेंट्रल की बॉडी इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसी) से बात की गई। यूं तो नियमानुसार काम बगैर टेंडर होंगे, लेकिन इसके लिए वित्त विभाग की मुहर लगना जरूरी है। बस, इसी के चलते अब देरी की जा रही है।
एक्सपर्ट टीम का विजिट, 32 लाख का प्रस्ताव
14 अगस्त को आई तेज बरसात से अल्बर्ट हॉल के गोदामों में करीब 4 फीट तक पानी भर गया था। इससे यहां रखी पुरा सामग्री काफी हद तक डूब गई। सामने आया कि करीब साढ़े 4 से 5 हजार तक ऑब्जेक्ट प्रभावित हुए। तीन दिन तो इनकी बाहर निकाल सुखाने में लगे। इसके बाद इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (दिल्ली) के विभागाध्यक्ष से संरक्षण के लिए बात की। मध्य सितंबर में एक्सपर्ट ने म्यूजियम का निरीक्षण कर पुरा सामग्री के संरक्षण, डॉक्यूमेंटेशन पर रिपोर्ट सौंप दी थी।
विद्याधर बाग की भी दीवारें हो गई थीं क्षतिग्रस्त
ऐतिहासिक विद्याधर के बाग में भी तेज बरसात से दीवारें क्षतिग्रस्त हो गई थीं। इससे कुछ दिन इसे बंद भी रखा गया। अब इंतजार से उकताने के बाद बाग को खोल दिया गया है, लेकिन दीवारों की हालत सुधरने का नाम नहीं ले रही। यहां भी काम आमेर विकास प्राधिकरण को करना है।
घाट की गूणी स्थित इस ऐतिहासिक बाग में ऊपर पहाड़ी से बघेरों का भी मूवमेंट लगा रहता है। टूटी दीवार से उनके लिए आवाजाही और आसान हो जाती है। इसके बावजूद सुधार और संरक्षण कार्य शुरू नहीं हो पाए।
^संरक्षण कार्य सेंट्रल गर्वमेंट की एजेंसी के जरिए होंगे। इसके लिए फाइनेंस की मंजूरी जरूरी है। बस, इसी इंतजार में फिलहाल काम शुरू नहीं हो पाए।
-प्रकाश शर्मा, निदेशक, पुरातत्व विभाग
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