बढ़ते पॉल्यूशन पर रोक के लिए प्रदेश के एक तरफ तो इलेक्ट्रिक बसों और सीएनजी को बढ़ावा दिया जा रहा है और इसके तहत इलेक्ट्रिक बसें खरीदने की तैयारी की जा रही है। डीजल ऑटो रिक्शा के परमिटों पर रोक लगा रखी है। दूसरी ओर, दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट ने यात्री एवं भारी कॉमर्शियल डीजल वाहनों के प्रवेश पर रोक लगा रखी है, जबकि राजधानी के पब्लिक ट्रांसपोर्ट में इलेक्ट्रिक-सीएनजी बसों को छोड़कर 100 डीजल बसों की खरीद की जा रही है।

यह स्थिति तो तब है जबकि राजधानी में सबसे अधिक प्रदूषण लो फ्लोर बसों से फैल रहा है। बसाें के पीछे वाहन चलाने वाला धुंआ से काला हाे जाता है। हालांकि इतना जरूर है कि अभी खरीदी जा रही बसों का इंजन पीछे की अपेक्षा आगे रहेगा। इस मामले में कई बार सवाल उठ चुके है।

दूसरी ओर जेटीसीएल की डीजल बसें खरीदने को लेकर पूरा मामला सवालों के घेरे मे है। जेसीटीसीएल ने 100 डीजल बसों का टेंडर भी कर चुका है। इन बसों के संचालन के लिए जेसीटीएसएल ठेकेदार को प्रति किमी के हिसाब से भुगतान करेगी। इसमें एसी बसों को 38.45 तो एनएसी बसों को 36.45 रुपए प्रति किमी के हिसाब से भुगतान किया जाएगा।

इसके अतिरिक्ति बसों की खरीद पर जेसीटीएसएल 15 करोड़ रुपए का सब्सिडी देगा। बाकी भुगतान ठेकेदार की ओर से किया जाएगा। बसों पर ड्राइवर ठेकेदार के तो कंडक्टर जेसीटीएसएल के होंगे। बसों से किराया के रूप में आने वाली राशि जेसीटीएसएल को मिलेगी। ठेकेदार बसों का संचालन 8 साल के लिए करेगा।
50 बसें 20 जनवरी से पहले
शहर का पब्लिक ट्रांसपोर्ट नए साल में रफ्तार पकड़ने जा रहा है। शहर के लोगों को नए साल में 200 बसें मिलने जा रही है। इसमें 100 इलेक्ट्रिक है तो 100 डीजल बसें आ रही है। 100 डीजल बसों में से 50 बसों की सौगात शहर के लोगों के 20 जनवरी से पहले मिल सकेगी। नई-पुरानी बसों के बाद जेसीटीएसएल के पास कुल मिलाकर 400 बसें हो जाएगी।

वर्तमान में जेसीटीएसएल करीब 190 बसों का संचालन कर रहा है। वहीं 100 डीजल बसों के अतिरिक्त जेसीटीएसएल के पास 100 इलेक्ट्रिक बसों भी जल्द मिलेगी। ये बसें अप्रैल तक मिलेगी। इलेक्ट्रिक बसों का संचालन सांगानेर डिपो से किया जाएगा। यही पर चार्जिंग स्टेशन बनाए जाएंगे।
जेसीटीएसएल का वर्कशॉप 10 साल में भी नहीं बन सका है
शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में लो फ्लोर बसों का संचालन वर्ष 2010 में हुआ था। 10 साल बाद भी जेसीटीएसएल खुद का वर्कशॉप नहीं बना सका है, जबकि वर्कशॉप के नाम पर जमीन आवंटित है, लेकिन बसों के मेंटीनेंस का ठेका प्राइवेट कंपनियों को देखा है। कंपनी समय पर बसों का मेंटीनेंस नहीं कर पाती। इससे शहर में प्रदूषण फैल रहा है।

इस बारे में जेसीटीएसएस के ओएसडी वीरेंद्र कुमार वर्मा का कहना है कि 100 डीजल बसों में से 50 बसें 20 जनवरी से पहले मिल जाएंगी, वहीं डीजल बसें नहीं खरीदने की राज्य सरकार की कोई पॉलिसी नहीं बनी हुई है। सरकार मना कर देगी तो डीजल बसें नहीं खरीदी की जाएगी। हालांकि हम लगातार कोशिश कर रहे हैं कि प्रदूषण को रोका जाएगा।



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राजधानी में सबसे अधिक प्रदूषण लो फ्लोर बसों से फैल रहा है।
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