पक्षी प्रजाति पर एक बार फिर संकट है। परिंदों को नई चुनौतियों से लड़ना ही है, लेकिन इनके पुराने घावों को भी भरने की जगह हरा ही छोड़ दिया गया है। पिछले साल देश की सबसे बड़ी खारे पानी की सांभर झील में सबसे बड़ी पक्षी त्रासदी हुई थी। वहां अभी तक राहत-रेक्स्यू के काम नहीं हुए। बर्ड फ्लू की दस्तक ने नई आशंकाओं को जन्म दे दिया है।
तीन जिलों में फैली झील 90 किली झील में पक्षियों को बचाने के लिए 80 लाख रुपए के बजट की मांग विभाग ने की थी। एक साल बीतने के बाद 37 लाख रुपए का मंजूर हुए। हालांकि, मिले 9 लाख रुपए ही। इससे मौके पर रेस्क्यू व्हीकल और दूर झील में झांकने के लिए दूरबीन तक नहीं खरीद पाए। फिलहाल मौके पर कुछ जगहों पर केवल जाल लगाए हैं। पक्षी हताहत होने की स्थिति में उनके इलाज और रखरखाव के सारे इंतजाम अधूरे हैं।
मुख्य रूप से नागौर और जयपुर डिविजन में झील किनारे पक्षियों की तादात आती है। दोनों जगह झील किनारे रेस्क्यू केजेज, वाटर पौंड, ट्रीटमेंट सेंटर, रेस्क्यू व्हीकल और पूरे सैटअप के साथ नियमित रूप से टीम को बैठना था। फिलहाल दोनों जिलों में झील पर केवल साढ़े 4-4 लाख रुपए के काम मंजूर हुए हैं।
दोनों जगह के संबंधित अधिकारियों ने बताया- बजट दिया है, लेकिन उसको खर्च करने की मंजूरी नहीं मिली। उस मंजूरी के बिना पैसा विड्रो नहीं कर सकते। बहरहाल, बर्ड फ्लू के दौर में सांभर की तरफ अभी किसी का ध्यान नहीं गया है। केवलादेव अभयारण्य में मृत पक्षी मिलने के बाद चिंता यहां भी है।
^ सांभर झील पर रेस्क्यू सेंटर बनाने के कुछ काम किए हैं। पूरी झील की निगरानी के लिए वैन वगैरह लेना बाकी है। पेमेंट बकाया है। बजट फाइनेंस कमेटी के सामने हमने बात रखी है।
-मोहनलाल मीणा, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन
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