राजस्थान की छप्पन की पहाडियों में स्थित सिवाना दुर्ग का इतिहास बड़ा गौरवशाली है | कहा जाता है की इस दुर्ग का निर्माण राजा भोज के पुत्र वीर नारायण पंवार ने १० वि शताब्दी में करवाया था बाद में ये दुर्ग सोनगरा चौहानों के अधिकार में आ गया|जब अल्लाउद्दीन खिलजी ने अपनी साम्राज्यवादी निति के तहत गुजरात और मालवा पर अधिकार कर लिया फिर वो अपने विजित प्रदेशो के मध्य स्थित राजपुताना के दुर्गो पर अधिकार करने की तरफ अग्रसर हुवा और उसने रणथम्भोर और चित्तोड पर अधिकार करने के उपरान् २ जुलाई १३०८ ईस्वी में सिवाना दुर्ग पर आक्रमण करने हेतु सेना भेजी| उस समय दुर्ग पर वीर सातलदेव अथवा सीतलदेव चौहान का अधिकार था और उसका राज्य क्षेत्र लगभग सम्पूर्ण बाड़मेर पर था और उसके गुजरात के सोलंकियो से अच्छे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे और जिसकी दृष्टी में दुर्ग को शत्रु के हाथो सौपने के बाद अपमानजनक जीवन व्यतीत करने की बजाय दुर्ग की रक्षा करते हुवे वीर गति को प्राप्त करना ज्यादा बेहतर था |शाही सेना ने दुर्ग के चारो तरफ घेरा डाल दिया किन्तु लम्बे समय तक शाही सेना को इस अभेद दुर्ग पर अधिकार करने में सफलता प्राप्त नहीं हुई और उलटे शाही सेना को ज्यादा क्षति हुई अनेक सैनिको के साथ साथ सैना नायक नाहर खा को अपने प्राण गवाने पड़े|तब स्वय अल्लाउद्दीन ने एक बड़ी सेना सहित इस दुर्ग के चारो तरफ घेरा डाला और लबे समय तक घेरा डालने से दुर्ग के भीतर की रसद समाप्त हो जाने के कारण सातलदेव ने अपने राजपूत सैनिको सहित दुर्ग के दरवाजे खोल कर शाही सेना पर आक्रमण कर दिया और युद्ध करते हुवे वीर गति को प्राप्त हुवे|तब अल्लाउद्दीन ने इस पर अधिकार कर लिया था और इस दुर्ग का नाम उसने खैराबाद रखा था और उसने यहाँ कमाल्लुद्दीन को सूबेदार नियुक्त किया| डा मोहनलाल गुप्ता के अनुसार अल्लाउद्दीन ने तारीखे अलाई में इस दुर्ग का उल्लेख इस प्रकार किया है “ सिवाना दुर्ग एक भयानक जंगल के बीच स्थित था |जंगल जंगली आदमियों से भरा हुवा था जो राहगीरों को लुट लेते थे | इस जंगल के बीच पहाड़ी पर काफिर सातलदेव एक सिमुर्ग ( फ़ारसी पुरानो में वर्णित एक भयानक और विशाल पक्षी) की भाँती रहता था और उसके कई हजार काफिर सरदार पहाड़ी गिद्धों की भाँती उसकी रक्षा करते थे|
केंद्र में खिलजियो की शक्ति कमजोर होने पर राव मल्लिनाथ के भाई राठोड जैतमल ने इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया और काफी लम्बे समय तक जैतमलोत राठोड़ो ने इस दुर्ग पर शासन किया फिर जोधपुर के शासक राव मालदेव ने इस दुर्ग को राठोड जैतमलोतो के वंशज डूंगरसी से हस्तगत कर लिया था|
जोधपुर के शासक मालदेव ने विक्रम संवत १५९४ और ईस्वी संवत २० जून १५३८ में सिवाना पर सेना भेजी और वहा के स्वामी राठोर डूंगरसी को निकाल कर वहा जोधपुर राज्य का अधिकार स्थापित किया और मंगलिया देवा (भादावत ) को वहा का किलेदार नियुक्त किया|( मुह्नोत नैणसी की ख्यात और वीरविनोद के अनुसार हालाकिं वीर विनोद में आक्रमण का वर्ष १५९५ दिया गया है ) राव मालदेव ने ही इस दुर्ग के परकोटे का निर्माण करवाया था और इसकी सुरक्षा व्यवस्था को सुद्रढ़ किया था |
तारीखे शेरशाही के अनुसार जोधपुर नरेश मालदेव ने शेरशाह सूरी के जोधपुर पर आक्रमण के दौरान भाग कर सिवाना की पहाडियों में शरण ली थी| जोधपुर की मुह्नोत नैणसी की ख्यात के अनुसार इस समय मालदेव के साथ राठोड जैसा, भैरुदासोत चम्पावत ,राठोड महेश घड्सियोत, राठोड जैतसी बाघावत और फलोदी का स्वामी राव राम और पोकरण का स्वामी जेतमाल भी साथ में गए थे|
सिवाना का अभिलेख (1537) – Inscription of Siwana - सिवाना दुर्ग के द्वितीय द्वार में अन्दर दोनों तरफ शिलालेख लगे हुवे है जिसमे दायी और लगे शिलालेख में राव मालदेव की सिवाना किले पर विजय का सूचक है|इसमें विजय के उपरान्त किये जाने वाले प्रबंध का भी वर्णन किया गया है| इसमें उस समय की स्थानीय भाषा का भी बोध होता है |
“ स्वस्ति श्रे (श्री) गणेश प्रा (प्र) सादातु (त्र) समतु (संवत १५९४ वर्षे आसा (षा) ढ वदि ८ , दिने बुधवा (स) रे मह (हां) राज (जा) धिराज मह (हा ) राय (ज) श्री मालदे (व) विजे (जय) राजे (राज्ये ) गढ़सी वने (वाणों) लिए (यो) गढ़री (री) कु चि म (माँ) गलिये देव भदाऊ तू (भंदावत) रे हाथि (थ) दि (दी) नि गढ़ थ (स्त) भेराज पंचा (चो) ली अचल गदाधरे (ण) तु रावले वहीदार लिष ( खी) त सूत्रधार करमचंद परलिय सूत्रधार केसव”
डा० गोपीनाथ शर्मा के अनुसार इसमें दी गई अष्टमी तिथि के बजाय सप्तमी होनी चाहिए और इसे चैत्रादी संवत १५९५ मारवाड़ में प्रचल्लित श्रावणदी के विचार से लेना चाहिए|( देखे फोटोग्राफ)
डा मोहन लाल गुप्ता के अनुसार तबकात ए अकबरी एवं अकबरनामा में भी सिवाना दुर्ग का उल्लेख है| राव मालदेव के बाद उसका पुत्र राव चंद्रसेन जोधपुर का शासक बना चूँकि चंद्रसेन राव मालदेव का तीसरा पुत्र था और प्रथम दो पुत्रो में ज्येष्ठ पुत्र राम और उदय सिंह के ज्येष्ठ होने के बावजूद अपनी प्रिय रानी के पुत्र होने के कारण राव मालदेव ने राव चंद्रसेन को जोधपुर का उतराधिकारी बनाया था इसलिए ताउम्र चंद्रसेन को अपने बड़े भाइयो राम और उदयसिंह से संगर्ष करण पड़ा था| राम का विवाह मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की पुत्री से हुवा था अत उदय सिंह जी ने उसे केलवा की जागीर प्रदान कर दी थी बाद में राम अकबर की सेवा में चला गया था और उसी के कहने पर अकबर ने शाही सेना भेज कर जोधपुर पर अधिकार कर लिया और चंद्रसेन को भाग कर भाद्राजुन की पहाडियों में शरण लेनी पड़ी थी|जोधपुर का शासन अकबर ने बीकानेर के शासक रायमल को सुपुर्द कर दिया था |चंद्रसेन का बड़ा भाई उदयसिंह फलोदी जागीर का स्वामी था और वो भी चंद्रसेन के विरुद्ध था और उनमे कई बार युद्ध भू हुवा था| अकबर चंद्रसेन के उत्पाती व्यवहार के कारण हमेशा उससे नाखुश रहा और आखिर में जब चंद्रसेन सिवाना किले में रहने लगा था|जब अजमेर में अकबर को चंद्रसेन के उत्पात की सुचना मिली तो उसने चंद्रसेन के विरुद्ध अपने सेनापतियो में शाह कुली खा मरहम, शिमाल खा, बीकानेर नरेश राय सिंह, केशेदास मेड़ता वाला और जगतराम आदि सरदारों को भेजा और कहा की यदि चंद्रसेन अपने किये पर शर्मिंदा हो तो उसे समझा देना अन्यथा आक्रमण कर देना| शाही सेना ने सिवाना दुर्ग पर घेरा डाला किन्तु वो इस अभेद दुर्ग को भेद नहीं पाई और रायमल ने अजमेर में बादशाह के समीप उपस्थित होकर और सेना भेजने हेतु निवेदन किया| उधर चंद्रसेन दुर्ग को अपने विश्वासपात्र पत्ता के हवाले कर वहा से भाग गया| और सेना को भेजने के बावजूद शाही सैना दुर्ग को भेद पाने में असमर्थ रही तब अकबर ने शाहबाज खान को भेजा| शाहबाज खा ने पूर्व के समस्त सरदारों को वापस भेज दिया और योजनाबद्ध तरीके से दुर्ग पर घेरा दाल कर प्रबल आक्रमण किये जिसके कारण रसद समाप्त होने के कारण पत्ता ने सिवाना दुर्ग शाहबाज खान के सुपुर्द कर वो राव चंद्रसेन के पास चला गया|इस प्रकार शाही सेना के कई माह तक दुर्ग पर घेरा डाले रही और जिसमे जलाल खा जैसे सेनापति भी मारा गया अंतत बड़ी मुश्किल से शाहबाज खा दुर्ग हासिल करने में सफल हो गया इससे सिवाना दुर्ग की अभेदता का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है
अकबर ने सिवाना दुर्ग को राव मालदेव के पुत्र रायमल को दे दिया था जिसे बाद में उसके पुत्र कल्याणदास वीर कल्ला को प्राप्त हुवा| इतिहासकार गौरीशंकर ओझा के अनुसार अकबर ने वीर कल्लाजी द्वारा किसी मनसबदार को मारने की बात पर नाराज होने पर जोधपुर के उदयसिंह को सिवाना दुर्ग पर अधिकार करने का आदेश दिया| उदय सिंह ने कुंवर भोपत और कुंवर जैत सिंह को दुर्ग पर आक्रमण करने का आदेश दिया जिस पर उन्होंने अनेक सरदारों को लेकर सिवाना दुर्ग पर घेरा डाल दिया किन्तु वीर कल्लाजी द्वारा दिन में उन पर आक्रमण कर उनके अनेक सरदारों को मार डाला और उन्हें वहा से भागना पड़ा| फिर बादशाह ने स्वयं उदयसिंह को सिवाना रवाना किया वह जोधपुर होते हुवे सिवाना गया और एक नाई की सहायता से उसने २ जनवरी 1589 को दुर्ग में प्रवेश कर लिया और वीर कल्ला जी ने बड़ी वीरता पूर्वक युद्ध करते हुवे वीरगति को प्राप्त हुवे और उनकी पत्नी हाडी रानी ने ललनाओं के साथ जौहर किया था|आज भी जहा वीर कल्लाजी वीरगति को प्राप्त हुवे थे वहा प्रतिवर्ष एक मेला भरता है और एक छतरी का भी निर्माण किया गया है |
सिवाना नगर में वीर कल्लाजी की मूर्ति एक चौराहे पर भी लगी हुई है और उच्च माध्यमिक विधालय में वीर कल्लाजी के घोड़े की समाधि बनी हुई जिसके बारे में कहा जाता है की उसने अपने स्वामी के प्राणों की रक्षा करते हुवे अपने प्राणों की आहुति दी थी|
सिवाना नगर के प्रवेश द्वार पर एक शिलालेख लगा हुवा है जिसमें लडकियों को न मारने की राजाज्ञा उत्कीर्ण है|सिवाना दुर्ग के अन्दर देखने लायक प्रमुख स्थल दुर्ग के परकोटे पर बने बुर्ज है जहा से सिवाना नगर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है| दुर्ग के अन्दर राजमहल के अवशेष और त्रिकलाश प्रसाद के अवशेष देखे जा सकते है| दुर्ग के अन्दर दुर्ग का मुख्य जल स्रोत तालाब देखने लायक है और उससे थोडा उपर राजमहल के पास एक शिवलिंग जिसके आगे नंदी बैठे है एक चबूतरे पर बने हुवे है|
सिवाना के आस पास के पर्यटक स्थल – Places out & around Siwana Fort –
सिवाना वैसे तो चारो तरफ से थार मरुस्थल से घिरा है किन्तु भौगोलिक दृष्टी से ये क्षेत्र छप्पन की पहाडियों के मध्य स्थित है जो की अत्यत उपजाऊ क्षेत्र रहा है हालाकि वर्तमान में इस क्षेत्र का जल स्तर काफी नीचे जा चूका है| वर्षा काल में सिवाना की पहाड़िया चारो तरफ हरीतिमा छा जाने के कारण अत्यत मनोहारी बन जाती है| सिवाना के आस पास के प्रमुख पर्यटक स्थलों में हल्देश्वर मंदिर जहा वीर दुर्गा दास द्वारा निर्मित पोल भी दर्शनीय है| महाभारत कालीन भीमगोड़ा मंदिर भी देखने लायक है जिसके बारे में कहा जाता है की अज्ञात वास के दौरान पांड्वो ने कुछ समय यह भी व्यतीत किया था और यहाँ महाबली भीम ने अपने घुटने की ठोकर से पर्वत में से जलधारा उत्पन्न की थी| आशापुरी माता का मंदिर सिवाना में स्थित आशापुरी माताजी का मंदिर है जहा मंछाराम जी महाराज का आश्रम है जिसके द्वारा भीमगोड़ा और अनेक स्थानों पर गौशाला का संचालन किया जाता है और अनेक परोपकारी कार्यो का सम्पादन किया जाटा है|आसोतरा का ब्रम्हा मंदिर कहते है की पुरे भारत में कुछ ही ब्रम्हा जी के मंदिर है जिसमे राजस्थान में पुष्कर और नागोर के अलावा केवल मात्र आसोतरा में ब्रम्हा मंदिर है जिसका निर्माण स्वर्गीय खेताराम जी महाराज ने की थी जो की राजपुरोहित ब्राह्मण समाज के गुरु थे| वर्तमान में ट्रस्ट द्वारा भव्य मंदिर , विश्राम स्थल का निर्माण और दर्शनार्थियों हेतु प्रतिदिन नि:शुल्क भोजन की व्यवस्था की गई है और एक विशाल गौशाला का भी संचालन किया जाता है| हिंगलाज माता का मंदिर – चारणों की आराध्य देवी श्री हिंगलाज माता का मूल मदिर पाकिस्तान में है और दूसरा मंदिर दुर्ग के समीप पहाडियों में स्थित है |मोकलसर की बावड़ी और अमरतिया कुंवा सिवाना के आगे जालोर मार्ग पर स्थित मोकलसर में एक प्राचीन कुवा है अमरतिया बेराजिसका मीठा और औषधीय गुणों युक्त जल बड़ा प्रसिद्द है|इसके अलावा मोकलसर की एक बावड़ी पग बाव अत्यंत प्रसिद्द है|जालोर दुर्ग सिवान गढ़ से जालोर दुर्ग का भी भ्रमण किया जा सकता है जिसका इतिहास भी सिवाना की भाँती बड़ा गौरवशाली रहा है|जैन मंदिर सिवाना में अनेक जैन मंदिर स्थित है |
सिवाणा कैसे जाए? How to get there?
सिवाना बाड़मेर से 104 किलोमीटर दूर है और बालोतरा से 36 किलोमीटर दूर है और बाड़मेर से और बालोतरा से निरंतर निजी और राजस्थान रोडवेज की बस सेवा संचालित होती रहती है|जोधपुर और उदयपुर से भी बसे उपलब्ध है | उदयपुर से रात्री दस बजे निजी बस बाड़मेर के लिए जाती है जो प्रात 04:30 बजे शिवाना पहुचाती है| जय ट्रेवल्स – उदियापोल, उदयपुर फोन न०- 0294-2481177 – 2481199 बालोतरा से चत्तरी बस स्टेशन से सिवाना के लिए प्रत्येक आधे घंटे में बस सेवा संचालित होती है|
कहा ठहरे ? Where to stay?
होटल कीर्ति
संजीवनी काम्प्लेक्स
सत्कार काम्प्लेक्स के सामने , जालोर रोड- 344044
फोन-07073476418
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