गम का महीना मुहर्रम सादगी और काेराेना गाइड लाइन का पालन करते हुए मनाया जा रहा है। पहली बार शहर में ताजिए के साथ हजारों की भीड़ वाला जुलूस नहीं निकला। इससे ताजिया सजाने वाले कारीगराें काे भी बेरोजगारी का सामना करना पड़ा। हर साल शिया मुस्लिम समुदाय की ओर से मुहर्रम पर एक से बढ़कर एक ताजिए सजाए जाते थे।

10वीं मुहर्रम काे ताजिया देखने के लिए सड़काें पर बड़ी संख्या में लाेग सड़काें पर एकत्रित हाे जाते थे। इस बार काेराेना वायरस के बढ़ते प्रभाव काे देखते हुए मुस्लिम समुदाय के लाेगाें ने अपने घराें में ही ताबूत बनाए और दुआएं मांगीं। राेजे आशूरा पर 3 ई छाेटी में बाबू खान रिजवी के निवास पर माेहम्मद साहिब के नवासे इमाम हुसैन साहिब का ताबूत व अलम सजाया और उनकी शहादत काे याद कर शाेक प्रकट किया।

मुहर्रम में राेजा रखने से मिलता है विशेष सबाब
ऑल इंडिया शिया फाउंडेशन के स्टेट प्रेसीडेंट सैयद रजा अब्बास नकवी के मुताबिक वैश्विक महामारी काेराेना वायरस के कारण मस्जिद, इमामबाड़ाें व घराें में फिजिकल डिस्टेंस रखकर व मास्क पहन फातिहा पढ़ा गया। लाेगाें ने घराें में इमाम हुसैन की शहादतें बयां काे सुना। साथ ही राेजा भी रखा। राेजा रखने से विशेष सबाब मिलता है।



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For the first time due to Kareena, Muharram was not taken out across the city
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