- मुकेश बोहरा अमन

ग्राम्य जीवन पर रोजगार का संकट, शहरों पर बढ़ता बोझ


  भारत गाँवों का देश है। भारत की अधिकतम जनता गाँवों में निवास करती हैं। महात्मा गाँधी जी कहते थे कि वास्तविक भारत का दर्शन गाँवों में ही सम्भव है जहाँ भारत की आत्मा बसती है। यह बातें अपनी जगह ठीक है मगर वर्तमान के दौर के हालात और परिस्थितियों का गहनता से अध्ययन करे तो वस्तुस्थिति ठीक इसके उलट आती है । ग्राम्य क्षेत्रों में अनेकानेक प्रकार की छोटी-बड़ी समस्याएं आज भी जस की तस है । उन सबमें गांवों में रोजगार की समस्या नासूर बनकर उभर रही है ।
 आधुनिकता की चकाचौंध व पैसे के बोलबाले ने ग्रामीण क्षेत्रों की आधारभूत अर्थव्यस्था को झकझोर कर रख दिया है । ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती आबादी और घटते रोजगार के अवसरों ने आमजन के सम्मुख आजीविका की समस्या खड़ी कर दी है । केन्द्र व राज्य सरकारे अपने-अपने स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार को लेकर कई प्रयास व प्रयोग करती रही है । सरकारों का अनुमान रहता है कि इन प्रयासों से गाँवों से शहरों की ओर होने वाला पलायन रुकेगा। तथा गांवों में जरूरतमंद को रोजगार मिल सकेगा । 

  वैश्विीकरण के इस दौर में गांवों में रोजगार के ऐसे बहुत कम अवसरों का निर्माण हो रहा है, जिससे स्थानीय ग्रामीण युवाओं को रोजगार प्राप्त हो सकें। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षित व अशिक्षित वर्ग के लिए रोजगार एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है । यह चिंताजनक है कि गांवों में ऐसे शिक्षित-अशिक्षित युवाओं की एक बहुत लम्बी कतार खड़ी है, जिसे यह समझ में नहीं आ रहा है कि वह कहां और कैसे रोजगार प्राप्त करे ? गांवों में जिनके पास बहुत कम जमीन है अथवा जो भूमिहीन हैं वे रोजगार के अभाव में चिंताग्रस्त हैं तथा वे रोजगार की तलाश में शहरों क ओर पलायन कर रहे है । 

गांव से शहरो की ओर पलायन जिम्मेदार कौन
  वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार हमारे देश की कुल जनसंख्या 121.02 करोड़ आंकलित की गई है जिसमें 68.84 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है और 31.16 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में निवास करती है। स्वतंत्र भारत की प्रथम जनगणना 1951 में ग्रामीण एवं शहरी आबादी का अनुपात 83 प्रतिशत एवं 17 प्रतिशत था। 2001 की जनगणना में ग्रामीण एवं शहरी जनसंख्या का प्रतिशत 74 एवं 26 प्रतिशत हो गया। इस प्राकर इन आंकड़ों के आधार पर भारतीय ग्रामीण लोगों का शहरों की ओर पलायन तेजी से बढ़ रहा है। 

  स्थानीय स्तर पर खेती के अलावा अन्य काम-धंधों के अभाव के कारण दूरदराज के शहर, कस्बों में पलायन ही आजीविका का प्रमुख विकल्प बन गया है। ऐसे में रोजगार की तलाश में कुशल व अकुशल बेरोजगार गांवों से शहरों की ओर पलायन कर रहे है । वें मात्र इस उम्मीद में अपने मूल स्थानों को छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे है कि उन्हें शहर में अलग-अलग उद्योगों व निर्माण से जुड़े कार्याें में रोजगार मिल सकेगा। 

पलायन के कारण
                    गांव से शहरों की तरफ पलायन करने का सिलसिला नया नहीं है । गांवों में घटते रोजगार के अवसरों के चलते ग्रामीण शहरों की ओर मुंह कर कर रहे हैं । गांव में बुनियादी सुविधाओं की कमी होने के कारण रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क, आवास, संचार स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाएं शहरों की तुलना में कम है । गांवों में लघु व कुटीर उद्योगों का लगातार क्षरण अथवा कमी होना, खेती-किसानी में बढ़ती अरूचि, गांवों में मजूदरी का अभाव, खेती का अधिक फायदेमंद न होना सहित कई बिन्दु जिन कारणों से ग्रामीण रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे है । 
                     
पलायन पर अंकुश के उपाय
  गांवों रोजगार सृजन एवं गांवों से शहरों की ओर पलायन को रोकने लिए सरकार, प्रशासन व समुदाय स्तर पर सबको मिलकर प्रयास करने की जरूरत है । जिसमें गांवों में शहरों के जैसे उच्च या तकनीकी शिक्षा के संस्थान खोलना, स्थानीय उत्पादों के मद्देनजर ग्रामीण अंचलों में छोटे उद्योगों को बढ़ावा देना, परिवहन सुविधा, सड़क, चिकित्सालय, शिक्षण संस्थाएं, विद्युत आपूर्ति, पेयजल सुविधा, रोजगार तथा उचित न्याय व्यवस्था के साथ-साथ बुनियादी शिक्षा में गुणात्मक सुधार सहित अन्य आवश्यक व मूलभूत सुविधाओ ंका सृजन करना जरूरी है । गांवों मे मजदूरों तथा अन्य बेरोजगार युवकों के लिए स्वरोजगार के लिए वित्तीय सहायता एवं गांवो मे उनके लिए प्रशिक्षण केन्द्र खोले जाएं। रोजगार के लिए बुनाई, हथकरघा, कुटीर उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण केन्द्र की स्थापना की जाए। स्वयं सहायता समूह, सामूहिक रोजगार प्रशिक्षण, मजदूरों को शीघ्र मजदूरी तथा उनके बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा तथा अन्य मनोरंजन की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।

  सचमुच उदारीकरण के वर्तमान दौर में रोजगार विहीन विकास की चुनौतियों के बीच गांवों में रोजगार अवसर बढ़ाने के लिए हमें नए सिरे से वर्तमान परिस्थितयों के अनुरूप भागीरथी प्रयास करने होंगे। गांवों में काफी संख्या में जो गरीब और अर्धशिक्षित को रोजगार देने के लिए निम्न तकनीक विनिर्माण में लगाना होगा। साथ ही इस पर भी पर्याप्त चिन्तन करने की जरूरत है कि गांवों के लिए जितना धन आवंटित हो, उसका सार्थक इस्तेमाल हो। यह जरूरी है कि सरकार एक ओर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई जान फूंके और ग्रामीण रोजगार योजनाओं को सार्थक रूप से कार्यान्वित करें, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण युवाओं का भी दायित्व है कि वे नए रोजगार बाजार के अनुरूप अपने को शिक्षित-प्रशिक्षित और प्रतिस्पर्धी बनाएं । ऐसा होने पर ही करोड़ों ग्रामीण बेरोजगारों को गांव में ही रोजगार मिल सकेगा तथा पलायन जैसी समस्या से मुकाबला किया सकेगा । 

मुकेश बोहरा अमन
साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता 
बाड़मेर।

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