धरोहर को संरक्षण के साथ-साथ पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की जरूरत


महावीर आचार्य बाड़मेर
  राजस्थान का खुजराहों के नाम विख्यात किराडू स्वयं में प्रेम, कला और अध्यात्म का नयाब नमूना है । राजस्थान के पश्चिमी सरहदी जिले बाड़मेर में बसा यह कलात्मक पर्यटन स्थल किराडू स्वयं में इतिहास की कई कथाओं को अपने में समेटे हुए है । जिसने काल के कई उथल-पुथल और संघर्ष अपनी आंखें से देखे है । दक्षिण भारतीय शैली में बने किराडू के कलात्मक मंन्दिरों के एक-एक पत्थर में प्रेम और अध्यात्म के साथ-साथ शिल्पकला सिर चढ़कर बोलती है । यहां आने वाले किराडू की कला और इसके इतिहास को जानकर अभिभूत रह जाते है । अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों की तलहटी में बसा किराडू बाड़मेर ही नही बल्कि पूरे राजस्थान व भारत भर के लिए अमूल्य धरोहर है ।  
  किराडू की अद्भूत कला, अनुपम सौन्दर्य एवं पत्थर-पत्थर में बसे प्रेम को जानने व सुनने को लेकर आने वाले पर्यटकों का साल भर आना-जाना लगा रहता है । बाड़मेर का ऐतिहासिक एवं कलात्मक स्थल किराडू के मन्दिर खुजराहों के मन्दिरों से हुबहू मेल खाते नजर आते है । 1161 ई. के आसपास यह स्थान किराट कूप के नाम से जाना जाता था। करीब 1000 ई. में यहां पर पांच मंदिरों का निर्माण कराया गया। जो स्थापत्य और कलात्मक दृष्टि से बहुत ही समृद्ध है। 

  हां, यह बात भी अपने में सत्य है कि मुगल आक्रमणकारियों ने इन मन्दिरों को अपने आक्रमण का शिकार बनाया और इन मन्दिरों को काफी नुकसान भी पहुंचाया । लेकिन किराडू के मन्दिरों की शिल्पकला इतनी नायाब है कि वे भग्नावशेष होने के उपरांत भी हमारे मन पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाते है । किराड़ू के इन मंदिरों को जन-जन में लोकप्रिय बनाने के लिए सरकारी स्तर पर पर्याप्त संरक्षण की आवश्यकता है । वहीं खण्डहरों को सहेजने को लेकर भी विभागीय स्तर पर कार्यनीति की सख्त जरूरत है । स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाओं एवं समुदाय का भी दायित्व बनता है कि वे भी किराडू को लोकप्रिय बनाने के लिए सकारात्मक माहौल तैयार अधिकाधिक प्रचार-प्रसार करें । 

मुकेश बोहरा अमन

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