जैन धर्म के प्रमुख तीर्थाें में से एक है तीर्थंकर आदिनाथ का धाम शत्रुंजय तीर्थ


ASO NEWS BARMER
विश्व विख्यात जैन तीर्थ शत्रुंजय (पालीताना) को शाश्वत तीर्थ, तीर्थाधिराज भी कहा जाता है। इसे साधारणतया पालीतणा के नाम से जाना जाता है। इस तीर्थ की महिमा क्या कहें, स्वयं प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव प्रभु ने पूर्व 99 बार इस भूमि पर पधारकर इस भूमि को पावन किया है। यहाँ का कण कण पवित्र है। अनंतानंत मुनि भगवंत इस भूमि से मोक्ष पधार चुके है। गुजरात के भावनगर जिले में सरल-सलिला, पवित्र व पावन शत्रुंजय नदी के तट पर बसा है जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ पालीतणा। शत्रुंजय पर्वत की तलहटी को जय तलहटी के नाम से जाना जाता है । जहां से पूजा-अर्चना व दर्शन-वन्दन के पश्चात् ही पावन गिरिराज शत्रुंजय तीर्थ की मोक्षदायी व कल्याणकारी यात्रा प्रारम्भ होती है। जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध पालीताणा में पर्वत शिखर पर एक से बढ़कर एक भव्य व सुंदर सैंकड़ों जैन मंदिरों की सुन्दर व शानदार श्रृखला मौजूद है। आदिनाथ भगवान के पावन धाम के जिनालयों में नक्काशी व मूर्तिकला का कार्य बेहद ही प्रशंसनीय, अद्भूत एवं उतम कोटि का कार्य बन पड़ा है। 11वीं शताब्दी में बने इन मंदिरों में संगमरमर के शिखर सूर्य की रोशनी में चमकते हुए बहुत ही अनूठे व निराले लगने लगते है तथा माणिक-मोतियों की मांनिद अपनी आभा व चमक बिखेरते नजर आते है।


 पालीताणा का प्रमुख व सबसे ख़ूबसूरत मंदिर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का है। आदिश्वर देव के इस मंदिर में भगवान की मनोहारी प्रतिमा व आंगी बहुत ही दर्शनीय है। वहीं दैनिक पूजा के दौरान भगवान का श्रृंगार देखने योग्य होता है। मंदिर के ऊपर शिखर पर सूर्यास्त के बाद केवल देव साम्राज्य ही रहता है अर्थात् सूर्यास्त के उपरांत किसी भी इंसान को ऊपर रहने की अनुमति नहीं है। वहीं पालीतणा कानूनी रूप से, यह दुनिया का एकमात्र शाकाहारी शहर हैं।



है ये पावन भूमि, यहाँ बार बार आना।
आदिनाथ के चरणों में, आकर के झुक जाना।।

पालीतणाजी में मुख्य व प्रमुख जिन मन्दिर आदि तीर्थंकर आदिनाथ भगवान का है। अर्थात् यह तीर्थ आदि तीर्थंकर आदिनाथ भगवान को समर्पित है। नवटूंक स्थित जिनालय इस शत्रुंजय गिरिराज का वैभव है। पालीताना में बहुमूल्य प्रतिमाओं के साथ-साथ हजारों प्रतिमाएं विद्यमान है। जिनकी प्रतिदिन पूजा-अर्चना आदि की जाती है। पालिताणा के प्रमुख मंदिरों में कुमारपाल, सम्प्रति महाराज, वस्तुपाल-तेजपाल मंदिर शामिल हैं। जैन धर्म के इस पवित्र व पावन तीर्थ स्थल का महत्व महाभारत काल से चला आ रहा है, पालिताणा जैन मंदिरों में तीन पाण्डव भाइयों भीम, युधिष्ठिर और अर्जुन ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। पालीताना मंदिर में बहुमूल्य और बेहद आर्कषक प्रतिमाओं का भी संग्रह है, वहीं इन मंदिरों की नक़्क़ाशी और मूर्तिकला पूरी दुनिया में मशहूर है। जैन धर्म में पांच प्रमुख तीर्थों में से एक पालिताणा मंदिरों की यात्रा करना प्रत्येक जैनी के जीवन में बेहद महत्व रखता है । प्रत्येक जैनी इन मंदिरों के दर्शन करना अपना कर्तव्य भी मानता है।


इस तीर्थ को लेकर ऐसी शाश्वत मान्यता है कि यहाँ आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है, कोई भी भक्त यहां से निराश होकर और खाली हाथ नहीं लौटता है, यही वजह है कि जैन समुदाय से जुड़े लोग अपने जीवन में कम से कम एक बार अमूमन बहुत सारे आदिनाथ परमात्मा के भक्त कई-कई बार इस मंदिर के दर्शन-वन्दन करने प्रतिवर्ष आते है। शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य जीवन में जब तक शत्रुंजय गिरिराज की एक बार यात्रा नही की उसका यह मनुष्य जन्म प्राप्त करना ही व्यर्थ है। वहीं फाल्गुन की फेरी में लाखों की तादाद में श्रद्धालुगण आदिनाथ परमात्मा के दर्शन करने के लिए आते है।


पालिताणा तीर्थ तक कैसे पहुंचे ?
गुजरात के भावनगर में सबसे पास एयरपोर्ट है, जो कि पालिताणा से मात्र 62 किलोमीटर दूर स्थित है। वहीं इस एयरपोर्ट से पालिताणा तक बसों और टैक्सी आदि के माध्यम से भी जा सकते हैं। वहीं पालिताणा मंदिर जाने के लिए भक्तजन रेल मार्ग या फिर सड़क मार्ग से भी आसानी से आ सकते हैं। भारत भर ही नही बल्कि दुनिया भर से प्रतिवर्ष लाखों भक्तगण पालीतणाजी पहुंचते है तथा आदि तीर्थंकर आदिनाथ भगवान के दर्शन-वन्दन कर स्वयं को धन्य मानते है ।

मुकेश बोहरा अमन
साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता
बाड़मेर राजस्थान

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