मंजिल तो तुम जीत चुकी बस ऐलान बाकी था अब वो भी हो गया ।
रेखा के संघर्ष की कहानी बहुत ही प्रेरणादायक है भले ही अंतिम परिणाम बाकी हो लेकिन गांव की इस बिटिया ने जो जीत हासिल कर ली है अपने हौसले और संघर्ष से अब तो सिर्फ वह तारीख बाकी है जब इतिहास लिखा जाएगा ।
रेखा का संघर्ष तूफान के विपरीत दौड़ लगाने के बराबर था
रेखा के पिता एक रिक्शा चालक है जो कि रिक्शा चलाकर अपने बच्चों की पढ़ाई खर्च और अपना घर चलाता है लेकिन उसने अपनी गरीबी का अनुभव कभी भी अपने बच्चों को होने नहीं दिया और रेखा को हमेशा पढ़ाई के लिए आगे भेजते रहें ।
रेखा ने भी अपने पिता के विश्वास को कायम रखा और हमेशा पढ़ाई के लिए संघर्षशील रही । पढ़ने के लिए गांव से बाहर भी जाना पड़ा तो रेखा ने दिन-रात नहीं देखा मेहनत के बलबूते पर राजस्थान पुलिस का पेपर पास किया तो मानो पूरे परिवार एवं गांव को गर्व महसूस करवा दिया लेकिन उनके संघर्ष का तो अभी असली इम्तिहान शुरू ही हुआ था । क्योंकि पेपर के बाद फिजिकल पास करना लड़कियों के लिए एक बड़ी चुनौती होता है लेकिन गांव की इस बेटियां ने इस चुनौती को दोनों हाथों से स्वीकार कर लिया ।
मानो गांव का इतिहास बदलने के लिए उसने ठान लिया था कि
सरकारी नौकरी के क्षेत्र में आज तक किसी भी लड़की का नाम नहीं था इसलिये मैं इस गांव का नाम रोशन करूंगी।
लेकिन सवाल उठता था रेखा की फिजिकल तैयारी का क्योंकि एक छोटे से गांव में फिजिकल तैयारी करना मुश्किल था लेकिन इस कठिन समय में साथ दिया रेखा के दोनो छोटे भाइयों ने सूरज छिपने के बाद और सूरज उगने से पहले इन 12 घंटों में खूब मेहनत की रेखा ने मैदान में लड़ती रही वह हर चुनोती, हर जंग से
और करती रही दौड़ की तैयारी ।
20 दिन के मिलेे इस समय मे खूब मेहनत की गांव की इस बिटिया ने रोजाना 10km. दौड़ करना , ओर उसके बाद पूरे दिन खेत मे मां का साथ देती थी ।
रेखा के लिए दौड़ करना भी किसी चुनौती से कम नहीं था क्योंकि दिन के समय गांव में दौड़ करना आसान नहीं था क्योंकि लोगो के हजारों सवालो का जवाब उसके पास नही था । सूरज छिपने के बाद दौड़ की तैयारी करती थी रेखा ।
इस समय में उसके छोटे भाइयों ने भरपूर साथ दिया हर समय ट्रैक पर दौड़ करवाने के लिए अगर भागना भी पड़ा तो साथ भी भागे ।
लेकिन भगवान को तो जैसे रेखा के सामने मुश्किल खड़ी करना थी। फाइनल दौड़ से 3 दिन पहले दौड़ की तैयारी करते समय रेखा के एक पैर में मोच पड़ गई और रेखा को दौड़ करने में बहुत मुश्किल होने लग गई ।
लेकिन संघर्ष की एक नई कहानी लिखने की चुनौती के सामने रेखा ने हार नहीं मानी और एक बडे दर्द के बावजूद दौड़ने के लिए बीकानेर शारीरिक पुलिस परीक्षा में शामिल हो गईं ।
भाग्य से रेखा की संघर्ष की कहानी को देखने का सौभाग्य मुझे भी मिल गया डॉक्टर करणी सिंह स्टेडियम में रेखा के साथ मेरा भी शारीरिक दक्षता परीक्षण होना था सुबह के 4:00 बजे हम दोनों ने स्टेडियम में प्रवेश किया लेकिन इतिहास बदलना अभी बाकी था दुर्भाग्य से मुझे height में बाहर कर दिया गया लेकिन रेखा दौड़ के लिए क्वालीफाई हो गई ।
पहले ही बेंच में दौड़ के लिए 200 लड़कों के साथ 20 लड़कियों में रेखा को भी शामिल कर लिया गया । मुश्किल ने हर मोड़ पर गांव की इस बिटिया को रोकने का प्रयास किया जब लड़को के साथ लड़कियों को भगा दिया गया । जैसे हीे दौड़ के लिए सायरन बजा रेखा ने पैर में दर्द के बावजूद दौड़ में कोई कमी नही छोड़ी
रेखा के संघर्ष ओर मेहनत के आगे बड़ी से बड़ी मुश्किल की भी एक ना चली । दौड़ते समय रेखा के साथ दौड़ रही लड़किया अचेत होकर गिर भी रही थी लेकिन रेखा ने अपना हौसला कायम रखा रेखा की दौड़ के समय मेरे मुंह से एक ही आवाज निकल रही थी कि भाग बहिन भाग अगर आज जंग जीत गई तो गांव के लिए मिसाल बन जाएगी । और 5km. की दौड़ रेखा ने निर्धारित समय से 2 मिनट पहले ही पूरी कर दी । ओर रेखा ने अपने परिवार और पूरे गांव का नाम गर्व से ऊंचा कर दिया । उस पिता की आँखे उस समय पानी से भर गई जब अपनी बेटी के संघर्ष को वो मैदान के बाहर से देख रहे थे । पूरे गाँव में खुशी की लहर फेल चूकी थी इस समय बहिन के संघर्ष के आगे कही न कही मेरी असफलता दब चुकी थी । बीकानेर पुलिस शारीरक दक्षता में सफल 25 लड़कियों में रेखा का नाम भी सुमार कर लिया गया पूरे गाँव का इतिहास अब बदल चुका था आज तक गाँव के लड़कों ओर गाँव की बहूओ ने तो खूब नाम कमा रखा था हर विभाग में लेकिन अबकी बार गाँव की बिटिया ने इतिहास के पन्नो पर अपना नाम लिखा था । गाँव की बेटी की इस सघर्ष को अपने आंखों से देखने के बाद में अपने आप को रोक ना सका मेने अपने शब्दों को एक कोरे कागज में बहना तेरे संघर्ष को सलाम नामक शीर्षक से लिख दिया । और मेरी असफलता को इस बहिन की सफ़लता से जोड़ दिया ।
✍✍
From - कृष्ण लाल कस्वां
बहना तेरे संघर्ष को सलाम
रेखा आचार्य के संघर्ष की कहानी सब के लिए मिसाल बन गई है बीकानेर जिले की लुणकरनसर तहसील का एक छोटा सा गांव मिठडियाँ आज वैसे तो सरकारी नौकरी के क्षेत्र अन्य गांवों की उपेक्षा बहुत आगे है । लेकिन आज तक गांव की किसी लड़की का सरकारी नौकरी में चयन नहीं हैं लेकिन अब इतिहास को बदल दिया है गांव की बेटी रेखा आचार्य ने ।रेखा के संघर्ष की कहानी बहुत ही प्रेरणादायक है भले ही अंतिम परिणाम बाकी हो लेकिन गांव की इस बिटिया ने जो जीत हासिल कर ली है अपने हौसले और संघर्ष से अब तो सिर्फ वह तारीख बाकी है जब इतिहास लिखा जाएगा ।
रेखा का संघर्ष तूफान के विपरीत दौड़ लगाने के बराबर था
रेखा के पिता एक रिक्शा चालक है जो कि रिक्शा चलाकर अपने बच्चों की पढ़ाई खर्च और अपना घर चलाता है लेकिन उसने अपनी गरीबी का अनुभव कभी भी अपने बच्चों को होने नहीं दिया और रेखा को हमेशा पढ़ाई के लिए आगे भेजते रहें ।
रेखा ने भी अपने पिता के विश्वास को कायम रखा और हमेशा पढ़ाई के लिए संघर्षशील रही । पढ़ने के लिए गांव से बाहर भी जाना पड़ा तो रेखा ने दिन-रात नहीं देखा मेहनत के बलबूते पर राजस्थान पुलिस का पेपर पास किया तो मानो पूरे परिवार एवं गांव को गर्व महसूस करवा दिया लेकिन उनके संघर्ष का तो अभी असली इम्तिहान शुरू ही हुआ था । क्योंकि पेपर के बाद फिजिकल पास करना लड़कियों के लिए एक बड़ी चुनौती होता है लेकिन गांव की इस बेटियां ने इस चुनौती को दोनों हाथों से स्वीकार कर लिया ।
मानो गांव का इतिहास बदलने के लिए उसने ठान लिया था कि
सरकारी नौकरी के क्षेत्र में आज तक किसी भी लड़की का नाम नहीं था इसलिये मैं इस गांव का नाम रोशन करूंगी।
लेकिन सवाल उठता था रेखा की फिजिकल तैयारी का क्योंकि एक छोटे से गांव में फिजिकल तैयारी करना मुश्किल था लेकिन इस कठिन समय में साथ दिया रेखा के दोनो छोटे भाइयों ने सूरज छिपने के बाद और सूरज उगने से पहले इन 12 घंटों में खूब मेहनत की रेखा ने मैदान में लड़ती रही वह हर चुनोती, हर जंग से
और करती रही दौड़ की तैयारी ।
20 दिन के मिलेे इस समय मे खूब मेहनत की गांव की इस बिटिया ने रोजाना 10km. दौड़ करना , ओर उसके बाद पूरे दिन खेत मे मां का साथ देती थी ।
रेखा के लिए दौड़ करना भी किसी चुनौती से कम नहीं था क्योंकि दिन के समय गांव में दौड़ करना आसान नहीं था क्योंकि लोगो के हजारों सवालो का जवाब उसके पास नही था । सूरज छिपने के बाद दौड़ की तैयारी करती थी रेखा ।
इस समय में उसके छोटे भाइयों ने भरपूर साथ दिया हर समय ट्रैक पर दौड़ करवाने के लिए अगर भागना भी पड़ा तो साथ भी भागे ।
लेकिन भगवान को तो जैसे रेखा के सामने मुश्किल खड़ी करना थी। फाइनल दौड़ से 3 दिन पहले दौड़ की तैयारी करते समय रेखा के एक पैर में मोच पड़ गई और रेखा को दौड़ करने में बहुत मुश्किल होने लग गई ।
लेकिन संघर्ष की एक नई कहानी लिखने की चुनौती के सामने रेखा ने हार नहीं मानी और एक बडे दर्द के बावजूद दौड़ने के लिए बीकानेर शारीरिक पुलिस परीक्षा में शामिल हो गईं ।
भाग्य से रेखा की संघर्ष की कहानी को देखने का सौभाग्य मुझे भी मिल गया डॉक्टर करणी सिंह स्टेडियम में रेखा के साथ मेरा भी शारीरिक दक्षता परीक्षण होना था सुबह के 4:00 बजे हम दोनों ने स्टेडियम में प्रवेश किया लेकिन इतिहास बदलना अभी बाकी था दुर्भाग्य से मुझे height में बाहर कर दिया गया लेकिन रेखा दौड़ के लिए क्वालीफाई हो गई ।
पहले ही बेंच में दौड़ के लिए 200 लड़कों के साथ 20 लड़कियों में रेखा को भी शामिल कर लिया गया । मुश्किल ने हर मोड़ पर गांव की इस बिटिया को रोकने का प्रयास किया जब लड़को के साथ लड़कियों को भगा दिया गया । जैसे हीे दौड़ के लिए सायरन बजा रेखा ने पैर में दर्द के बावजूद दौड़ में कोई कमी नही छोड़ी
रेखा के संघर्ष ओर मेहनत के आगे बड़ी से बड़ी मुश्किल की भी एक ना चली । दौड़ते समय रेखा के साथ दौड़ रही लड़किया अचेत होकर गिर भी रही थी लेकिन रेखा ने अपना हौसला कायम रखा रेखा की दौड़ के समय मेरे मुंह से एक ही आवाज निकल रही थी कि भाग बहिन भाग अगर आज जंग जीत गई तो गांव के लिए मिसाल बन जाएगी । और 5km. की दौड़ रेखा ने निर्धारित समय से 2 मिनट पहले ही पूरी कर दी । ओर रेखा ने अपने परिवार और पूरे गांव का नाम गर्व से ऊंचा कर दिया । उस पिता की आँखे उस समय पानी से भर गई जब अपनी बेटी के संघर्ष को वो मैदान के बाहर से देख रहे थे । पूरे गाँव में खुशी की लहर फेल चूकी थी इस समय बहिन के संघर्ष के आगे कही न कही मेरी असफलता दब चुकी थी । बीकानेर पुलिस शारीरक दक्षता में सफल 25 लड़कियों में रेखा का नाम भी सुमार कर लिया गया पूरे गाँव का इतिहास अब बदल चुका था आज तक गाँव के लड़कों ओर गाँव की बहूओ ने तो खूब नाम कमा रखा था हर विभाग में लेकिन अबकी बार गाँव की बिटिया ने इतिहास के पन्नो पर अपना नाम लिखा था । गाँव की बेटी की इस सघर्ष को अपने आंखों से देखने के बाद में अपने आप को रोक ना सका मेने अपने शब्दों को एक कोरे कागज में बहना तेरे संघर्ष को सलाम नामक शीर्षक से लिख दिया । और मेरी असफलता को इस बहिन की सफ़लता से जोड़ दिया ।
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From - कृष्ण लाल कस्वां
रेखा आचार्य एंव उनके समस्त परिवार को हार्दिक बधाई देते हुए उज्जवल भविष्य की शुभकामनायें प्रेषित करता हूँ ।
जवाब देंहटाएं"जय हिंद, जय भारत"
चुतराराम आचार्य
कोटड़ा(बाड़मेर)
रेखा ने अपने परिवार और मेरे गाँव का नाम रोशन किया है । बहुत बहुत बधाई बहन रेखा को ......ऐसी कल्पना चावला हर मा बाप को दे भगवान
जवाब देंहटाएंThanks रेखा
जवाब देंहटाएंरेखा आचार्य एंव उसके परिवार को बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंरेखा आचार्य हैं उसके परिवार को बहुत-बहुत बधाई हो
जवाब देंहटाएंरेखा आचार्य एवं उसके परिवार को बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंMany many congratulations...
जवाब देंहटाएंVasudev acharya revenue inspector kadail tehsil pushkar
Me meri bahan meri masi ji ko iske kiye bahut bahut badai deta hu
जवाब देंहटाएंMe meri bahan meri masi ji ko iske kiye bahut bahut badai deta hu
जवाब देंहटाएंBhot bhot bdhai
जवाब देंहटाएंउज्ज्वल भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाए
जवाब देंहटाएंCongregation
जवाब देंहटाएंIs sangharsh ko salam
जवाब देंहटाएंIs sangharsh ko salam
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई हो
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई हो
जवाब देंहटाएंरमेश आचार्य पीपलू वमेरे परिवार की तरफ से बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएं