सरकारी कामकाज में पारदर्शिता की जिस सोच को लेकर आरटीआई कानून लागू किया गया था, उसकी क्रियान्विति पर लालफीताशाही भारी पड़ रही है। 30 दिन में सूचना उपलब्ध करवाने की बाध्यता वाले कानून की हालत यह हाे गई है कि सूचना नहीं मिलने पर कानूनी लड़ाई के लिए राज्य आयाेग पहुंचे पीड़िताें काे सुनवाई के लिए नाै-नाै महीने बाद की तारीखें दी जा रही है। राज्य सूचना आयाेग में सूचना आयुक्त की तैनाती नहीं हाेने से यह हालात हाे गए हैं।
जिस कानून काे लागू करने की मंशा यह है कि शासन लाेगाें के प्रति जिम्मेदारी का निवर्हन सही तरीके से कर रहा है या नहीं, इसे लेकर पूरी तरह पारदर्शिता रहे और सरकारी दफ्तराें के उन दस्तावेज और कारनामाें की जानकारी हाे, जिनका इस कानून के अभाव में मिलना नामुमकिन हाेता है। जब इस कानून से जुड़ी अपीलों के निपटारे में ही दाे से तीन साल लग जाएंगे ताे जाहिर है कि कानून की मंशा पूरी नहीं हाेगी।
यही कारण है कि 30 दिन में सूचना उपलब्ध कराने की जवाबदेही तय करने वाला कानून आज हजारों लंबित अपीलों की शक्ल में इसकी विफलता को बयां कर रहा है। सूचना आयोग में लंबे समय सूचना आयुक्तों के पद रिक्त हैं, आयोग में अपीलों का अंबार लगा है, यूं तो सूचना का अधिकार अधिनियम में आवदेनकर्ता को 30 दिन में सूचना उपलब्ध कराने का प्रावधान है, प्रथम अपील का विनिश्चय भी 30 दिन में करना होता है किंतु राज्य सूचना आयोग में द्वितीय अपील के विनिश्चय की कोई समय सीमा नहीं है। आयोग में सुनवाई के लिए 8 से 9 महीने की तारीखें दी जा रही हैं वहीं अपीलों के निस्तारण में दो वर्ष से भी अधिक का समय लग रहा है। ऐसे में देरी से सूचना मिलने का औचित्य समाप्त हाे जाता है।
लाेक सूचना अधिकारी स्तर पर ही मिल जानी चाहिए सूचनाएं
माैजूदा हालात में यह साेचने पर भी मजबूर हाेना पड़ गया है कि क्या इस कानून का भी वही हश्र होने वाला है जो लालफीताशाही और बाबूगिरी के मकड़जाल में फंसे दूसरे कानूनों का होता है? जो सूचनाएं लोक सूचना अधिकारियों के स्तर पर ही मिल जानी चाहिए उसके लिए मामला राज्य आयाेग तक जा रहा है और नतीजा हजाराें अपील के रूप में सामने हैं जिनका निपटारा करना मुश्किल हाे रहा है। आयोग पर काम का बोझ बढ़ने से तारीखें मिल रही हैं, न्याय नहीं मिल पा रहा है।
1. पहली सुनवाई ही 9 माह बाद
आरटीआई कार्यकर्ता तरुण अग्रवाल की ओर से मई 2020 में राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड से भर्ती संबंधी जानकारी प्राप्त न होने पर आयोग में अपील की गई, आयोग ने अगस्त 2020 में अपील दर्ज कर बोर्ड को नोटिस जारी किये और सुनवाई के लिये नौ महीने बाद की तारीख 18 मई 2021 तय की है।
2. तीन बार टली सुनवाई, अब अगले साल सुनेंगे
नगर निगम से 28 अगस्त 2019 को आरटीआई में निगम कार्यालयों में एयरकंडीशन लगाए जाने के बारे में जानकारी चाही थी। मामले में आयोग स्तर पर तीन बार तारीखें दी जा चुकी है। अगली सुनवाई की तारीख अगले साल 3 फरवरी 2021 को है।
3. आयाेग में दाे साल से पैंडिंग है मामला
1 जनवरी 2019 को राजस्थान विधानसभा में आरटीआई पेश कर विधायकों के रोडवेज बस में यात्रा संबंधी दस्तावेज मांगे थे। सूचना नहीं मिलने से आयोग में अप्रैल 2019 में अपील की गई। आयोग अब तक इस मामले में 4 बार तारीखें दे चुका है। अगली सुनवाई की तारीख 7 माह बाद 7 अप्रैल 2021 को है।
4. सात माह बाद सुनवाई की आस
एसडीओ से ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्रों, मिड डे मील निरीक्षण के संबंध में 31 दिसंबर 2019 को किए आवेदन की जानकारी न मिलने से आयोग से जुलाई 2020 में नोटिस जारी हुए और सुनवाई के लिए 25 जनवरी 2021 की तारीख दी गई है।
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