कोरोना रिकवरी के बाद मरीजों में पोस्ट-कोविड इफैक्ट के केस में अब जीबी (गिलैन बारे) सिंड्रोम भी सामने आया है। दूसरे कई वायरल और बैक्टीरियल इंफेक्शन में जीबी सिंड्रोम के केस तो मिलते थे, लेकिन शहर में कोविड से रिकवर हुए मरीज में इस सिंड्रोम का पहला केस है। आरएनटी मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन विशेषज्ञ प्रोफेसर महेश दवे ने बताया कि पिछले दिनों शहर के जगदीश चौक क्षेत्र निवासी 64 वर्षीय पुरुष में यह सिंड्रोम पाया गया है।

राेगी काे कोरोना रिकवरी के कुछ दिनों के बाद ही पैरो में दर्द की शिकायत शुरू हो गई थी। इसके बाद इन्हें लकवा हाे गया। दाे सप्ताह हाॅस्पिटल में भर्ती रखकर इलाज किया गया। इलाज के दौरान इन्हें इंजेक्शन के कई डोज दिए गए। इसके बाद रिकवरी होनी शुरू हुई।
डॉक्टर बताते हैं कि संक्रमण के बाद एंटी बॉडी शरीर के खिलाफ ही काम करने लगती है। इम्युन सिस्टम नसों पर हमला करता है। जिससे सांस लेने वाली मांस पेशियां कमजोर हो जाती है। मरीज के पैर और हाथ के मूवमेंट में तकलीफ, झुनझुनाहट, कमजोरी और सांस लेने में परेशानी शुरू हो जाती है।


पहले पैर सुन्न होते हैं, फिर शरीर के ऊपरी हिस्से पर असर

जीबी सिंड्रोम में सबसे पहले मरीज के पैरों में कमजोरी आती है। दो से तीन दिन के अंदर पैरों के मूवमेंट में परेशानी होना शुरू हो जाती है। पैर में लकवे जैसा सुन्नपन आने लगता है। यही सुन्नपन धीरे-धीरे शरीर के ऊपरी हिस्से की ओर बढ़ने लगता है। सिंड्राेम के असर से मरीज के गर्दन के नीचे का हिस्सा कुछ ही दिन दिनाें में लकवाग्रस्त हो जाता है।

80 फीसदी मरीज शुरुआती दौर में ही हो जाते हैं रिकवर
चिकित्सकाें के मुताबिक यह सिंड्रोम आम तौर पर बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण से होता है। करीब 1 लाख मरीजों में से 1 में जीबी सिंड्रोम के लक्षण सामने आते हैं। शुरुआती स्टेज में ही इलाज से 80% मरीज पूरी तरह से स्वस्थ हो जाते हैं। जबकि 20% सांस लेने में तकलीफ के बाद वेंटिलेटर पर शिफ्ट करना पड़ता है। हालांकि मरने वालों की संख्या बेहद कम है।



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The first case of GB syndrome in the city, which protects against the immune system disease, is now giving paralysis
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